Sunday, 26 November 2017

ध्रूक को चार्ज कहने वालों का भ्रमभंग

#आक्षेप :- करशैईगाड़ के ब्राह्मण चार्ज भाट है |

#निराकरण :- पहली बात - चार्ज भाट का लक्षण क्या है ? और उसे सप्रमाण सिद्ध करो! क्योंकि #लक्षणप्रमाणाभ्यां_वस्तुसिद्धि: 👈 लक्षण व प्रमाण द्वारा वस्तु की सिद्धि होती है | अत: आक्षेप्ता को लक्षण + प्रमाण सहित उपर्युक्त शब्द का विवेचन करना चाहिए |

👉आरोप लगाना अलग बात है उसे सिद्ध करना अलग बात है 👈

👉 वैयक्तिक द्वेष के कारण कुछ भी कह देना आपकी मूर्खता ही है |

दूसरी बात - आक्षेप्ता को पहले अपने परिवेष में झांकना चाहिए कि आपके परिवेष में कैसे ब्राह्मण हैं ? अध्ययन, अध्यापनादि 6 कर्म ब्राह्मण को शास्त्र में विहित हुए है| आप उसका कितना परिपालन करतें है यह कोई कहने की आवश्यकता नहीं है!

ब्राह्मण को भोजनालय (होटल) खोलकर निर्वाह करना किस शास्त्र में कहा है ?

चाण्डाल, शूद्रादिओं के झूंठे पात्र (भांडे ) धोना किस शास्त्र में विहित है ?

शाक-सब्जियों का विक्रय वैश्य कर्म है किस शास्त्रविधि से आप यह कार्य करते हो ?

मांस मदिरा आदि का विक्रय करना कहां तक शास्त्रोचित है ?

ऐसे अनेक कर्म है कहां तक गिनाऊं ? जो तुम नित्य करते हो !

ऐसे तो करशैईगाड़ के ब्राह्मण नहीं है |

(करशैईगाड़ के #ध्रूक_ब्राह्मण देव मन्दिर में कार्य करतें है अत: हमने मृतकादि कर्म के लिए अपनी जमीन देकर एक #नाथ परिवार को रखा है जो कि यह सब कार्य करता है| )

👉 भाव यह है कि यदि स्वयं तुम परधर्म रूपी अधार्मिक कृत्य में संलग्न हो तो अन्यों को विना प्रमाण कुछ कहना उचित नहीं|
परधर्म नरकादि भय देने वाला होता है | 👍

ब्राह्मणों! को #श्री_सुदामा जी के पावन चरित्र से आज सीखने की महती आवश्यकता है | अत्यन्त दीन दशा में रहते हुए भी स्वधर्म नहीं छोडा 👌👍

और सुनो! उच्च कुल मात्र में जन्म लेने से ही मनुष्य श्रेष्ठ नहीं होता | योनि + तप + श्रुत ये तीन शास्त्र ने ब्राह्मण के कारण वताए | तप व श्रुत से हीन होने पर जातिमात्र ब्राह्मण होता है पूज्य नहीं |

#तप: #श्रुतं_च_योनिश्च_त्रय_ब्राह्मण्यकारणम्|
#तप: #श्रुताभ्यां_यो_हीनो_जातिब्राह्मण_एव_स: ||

अपि च -

#रुपयौवनसम्पन्ना: #विशालकुलसम्भवा:|
#विद्याहीना: #न_शोभन्ते_निर्गन्धा_इव_किंशुका:||

प्रभु सद्बुद्धि प्रदान करें!

जय श्री राम

No comments:

Post a Comment

पूजा आदि में सिर नहीं ढंका चाहिए

शास्त्र प्रमाण:- उष्णीषो कञ्चुकी चात्र मुक्तकेशी गलावृतः ।  प्रलपन् कम्पनश्चैव तत्कृतो निष्फलो जपः ॥ अर्थात् - पगड़ी पहनकर, कुर्ता पहनकर, नग...