प्रश्न : - न मे जातिभेद:
उत्तर: - अब तुम सिखाओगे हमें शांकर सिद्धान्त ? परमार्थ में प्राणी मात्र से अभेददृष्टि होने पर भी व्यवहार में उनसे यथायोग्य भेद व्यवहार करना ही धर्म होता है , इस प्रकार दोनों का सामञ्जस्य यही योग है , भावाद्वैत ही कर्तव्य होता है, क्रियाद्वैत नहीं !
#भावाद्वैतं_सदा_कुर्यात्_क्रियाद्वैतं_न_कर्हिचित् ।
#अद्वैतं_त्रिषु_लोकेषु_नाद्वैतं_गुरुणा_सह ।।
-श्री आद्य शंकराचार्य ।
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