#आक्षेप - तुम हिन्दू गाय का पेशाब पीते हो इंसान के नाम पर धब्बा हो ! कौन अपनी माता का पेशाब पीता है ?
( कुछ आतंकी मानसिकता वाले विधर्मियों द्वारा फेसबुक के विभिन्न वीडियो , कमेंट आदि में लगाया जाने वाला प्रसिद्ध आक्षेप, यथा -
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=458074904578506&id=225163591202973 )
#उत्तर - हमारे धर्म में माता किसे कहते हैं , ये तुम सुंअरों को नहीं पता , क्योंकि अम्मी को मौलवी सहित पूरे परिवार की जान बनाकर उसके हलाला से पैदा होने वाले तुम #अम्मीजानवादी माता शब्द का तात्पर्य क्या जानों !
चलो हम बताते हैं , सुनो -
तुम्हें लग रहा है कि जिसने पैदा किया , वो ही माता होती है , इसीलिये तुमने कहा - /// कौन अपनी माता का पेशाब पीता है // क्योंकि लोक में तुमने किसी मनुष्य को अपने पैदा करने वाली स्त्री का पेशाब पीते नहीं देखा । बस इतनी ही तुम्हारी समझ है , उसी हिसाब से तुमने माता सम्बोधन का अभिप्राय समझ लिया । हमारे वैदिक शब्दों को इस जन्म में समझना तुम्हारे वश की बात नहीं , इसीलिये इसके आगे तुमको माता शब्द का कुछ भी अभिप्राय समझ नहीं आता !
हमसे सुनो 'माता' शब्द का अभिप्राय -
केवल पैदा करने वाली स्त्री को माता नहीं कहते अपितु जो वस्तु हमारा निर्माण करे, उसके स्रोत को हम माता कहते हैं ।☝️
हमारे धर्म में ये जो माता सम्बोधन है , इसका अभिप्राय होता है "निर्माता" । इसीलिये हमारे यहॉ कहा गया है -
#माता_निर्माता_भवति ।
जिस चीज से भी हमारा निर्माण होगा , उसके स्रोत को हम माता कहेंगे !
गौमूत्र हमारे स्वास्थ्य और शुद्ध स्वभाव का निर्माण करता है , इसलिये हम इस गोमूत्र के मूल स्रोत अर्थात् गाय को माता कहते हैं ।
जैसे अस्थि (हड्डी) अपनी जाति से अशुद्ध है , किन्तु शंख के रूप में अस्थि शुद्ध है , ऐसे ही मूत्र अशुद्ध है किन्तु गोमूत्र के रूप में वह पवित्र होता है । हमारा ये गहन आध्यात्मिक विज्ञान तुम्हारी समझ में नहीं आयेगा ।
एक स्त्री के स्तन का दूध हमारा निर्माण करता है , इसलिये उस दूध के मूल स्रोत अर्थात् उस स्त्री को हम माता कहते हैं ।
अन्न हमारा निर्माण करता है , इसलिये उसके मूल स्रोत अर्थात् धरती को हम माता कहते हैं ।
ये पूरी प्रकृति हमारा निर्माण करती है , इसलिये इसके मूल स्रोत अर्थात् भगवान् को भी हम माता कहते हैं !
सम्भवतः अब तुम्हारी समझ आ गया होगा कि क्या होता है 'माता' सम्बोधन का तात्पर्य, क्योंकि हमने सिखाया ही इतना अच्छा है ! ना आया हो तो भी कोई आश्चर्य नहीं क्योंकि सुंवरमति तो हो ही तुम !
अब रही बात तुम्हारे कथन ///इंसान के नाम पर धब्बा//होने की , तो इसका प्रत्युत्तर ये है कि हमारी संस्कृति में इंसान नहीं होते अपितु #मानव होते हैं । सबको इंसान कहना तुम जैसे आतंकियों की आस्था है , जिस पर हम धब्बे बनकर उसे 'कलंकित' सिद्ध कर रहे हैं ।
।। जय श्री राम ।।
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