Wednesday, 11 October 2017

माता शब्द का तात्पर्य

#आक्षेप - तुम हिन्दू गाय का पेशाब पीते हो इंसान के नाम पर धब्बा हो ! कौन अपनी माता का पेशाब पीता है ?

(  कुछ आतंकी मानसिकता वाले विधर्मियों द्वारा  फेसबुक के विभिन्न वीडियो , कमेंट आदि में लगाया जाने वाला  प्रसिद्ध आक्षेप, यथा -
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=458074904578506&id=225163591202973  )

#उत्तर -  हमारे धर्म में  माता किसे कहते हैं , ये तुम सुंअरों को नहीं पता , क्योंकि  अम्मी को  मौलवी सहित पूरे परिवार  की  जान बनाकर  उसके हलाला  से  पैदा होने वाले तुम  #अम्मीजानवादी  माता शब्द  का  तात्पर्य  क्या जानों !

चलो हम बताते हैं , सुनो -

तुम्हें लग रहा है कि जिसने पैदा किया  , वो ही माता होती है , इसीलिये तुमने कहा - /// कौन अपनी माता का पेशाब पीता है // क्योंकि लोक में तुमने किसी मनुष्य को अपने पैदा करने वाली स्त्री का पेशाब  पीते नहीं देखा । बस इतनी ही तुम्हारी समझ है , उसी हिसाब से तुमने माता सम्बोधन  का अभिप्राय समझ लिया ।  हमारे  वैदिक शब्दों को इस जन्म में समझना तुम्हारे वश की बात नहीं , इसीलिये   इसके आगे तुमको माता शब्द का कुछ भी अभिप्राय  समझ नहीं आता !

  हमसे सुनो 'माता' शब्द का अभिप्राय  -

केवल पैदा करने वाली स्त्री को  माता नहीं कहते  अपितु  जो  वस्तु हमारा निर्माण  करे,  उसके स्रोत  को हम  माता कहते हैं ।☝️

हमारे धर्म  में ये जो माता सम्बोधन है ,  इसका अभिप्राय होता है  "निर्माता" । इसीलिये   हमारे यहॉ कहा गया है -

#माता_निर्माता_भवति । 

जिस चीज से भी हमारा निर्माण होगा , उसके स्रोत को हम माता कहेंगे !

गौमूत्र  हमारे स्वास्थ्य और शुद्ध  स्वभाव का निर्माण करता है , इसलिये हम इस गोमूत्र के मूल स्रोत  अर्थात् गाय को माता कहते हैं ।

जैसे  अस्थि (हड्डी) अपनी जाति से  अशुद्ध है , किन्तु शंख के रूप में अस्थि शुद्ध है ,   ऐसे ही मूत्र अशुद्ध है किन्तु गोमूत्र के रूप में वह पवित्र होता है । हमारा  ये गहन आध्यात्मिक    विज्ञान तुम्हारी समझ में नहीं आयेगा ।

एक स्त्री के स्तन का दूध हमारा निर्माण करता है , इसलिये उस  दूध के मूल स्रोत अर्थात् उस स्त्री को हम माता कहते हैं ।

अन्न हमारा निर्माण करता है , इसलिये  उसके मूल स्रोत अर्थात् धरती को हम माता कहते  हैं ।

ये पूरी प्रकृति हमारा निर्माण करती है , इसलिये इसके मूल स्रोत अर्थात् भगवान् को भी हम माता कहते हैं !

सम्भवतः अब तुम्हारी समझ आ गया होगा कि क्या होता है 'माता' सम्बोधन  का तात्पर्य,   क्योंकि हमने सिखाया ही इतना अच्छा है !   ना आया हो तो भी कोई आश्चर्य नहीं क्योंकि  सुंवरमति तो हो ही तुम !

अब रही बात तुम्हारे कथन ///इंसान के नाम पर धब्बा//होने की , तो  इसका प्रत्युत्तर ये है कि हमारी संस्कृति में इंसान नहीं होते अपितु #मानव होते हैं । सबको इंसान कहना   तुम जैसे आतंकियों की  आस्था है , जिस पर हम धब्बे बनकर उसे 'कलंकित'  सिद्ध कर रहे हैं ।

।। जय श्री  राम ।।

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