#प्रश्न - यदि अहिंसा परम धर्म है तो फिर क्यों निरीह पशुओं की बलि दी जाती है | क्या यह हिंसा नहीं है ?
#उत्तर - सनातन धर्म में शास्त्र का सार है कि #परोपकारपुण्याय पशुयोनि अधम योनि है | यह जीव को उसके पापफल भोगार्थ मिलती है | इस अधम योनि से जीव को मुक्त करने की यह अनितरसाधारण विधि वेद मात्र में विहित हुई है | शास्त्रोक्त पशुबलि तभी की जाती है जब बलिदान किए जा रहे पशु की सहमति + सुख + उन्नति उस बलिकर्म में निहित हो | इस कारण से शास्त्रोक्त बलिकर्म हिंसा रूप न होकर उस जीव केे लिए कल्याण कारक व परोपकारक होता है | अब भला किसी का कल्याण व परोपकार करना कैसे अधर्म हो गया ? अत: कहा कि -
#अष्टादशपुराणेषु_व्यासस्य_वचनद्वयम् |
#परोपकारपुण्याय_पापाय_परपीडनम् | इति
अपि च पशु की सृष्टि भी यज्ञ के लिए स्वयं ब्रह्मा जी ने ही की है | इसलिए विधिवत् यज्ञ में वध अवध ही होता है |
यज्ञ में निधन प्राप्त पशु उत्तमोत्तम योनि को पाता है|
तथा च वेद में जो यज्ञार्थ हिंसा नियत की है इस चराचर में उसे अहिंसा ही जानना चाहिए | क्योंकि हिंसा क्या है ? अहिंसा क्या है ? धर्म क्या है? अधर्म क्या है ? इसमें वेद ही प्रमाण है | यत: वेद से ही धर्म प्रकट हुआ है |
👉 पर हां शास्त्रविधि रहित जो जो भी बलिकर्म या उदरभरणार्थ पशुहत्या होती है वह सब हिंसा मात्र है | उससे वचना व वचाना चाहिए | आजकल प्राय: सर्वत्र ऐसा ही हो रहा है |
जय श्री राम
Enter your comment...आचार्यवर पशु की सहमति +सुख+उन्नति से क्या अभिप्राय है ?
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