आप जब एक दाना चावल का खाते हो तो पता है धरती आपसे क्या कहती है ,
धरती कहती है , मैं तो माता हूं , मैंने तो प्राणीमात्र के लिये ये दाना उगाया था , क्योंकि मेरे तो सभी बच्चे हैं , तू अकेला ही ये खा गया ?
धरती ने हमारा नाम तो लिखा नहीं था न दाने पर कि तू ही खाना इसे !
यही है #पाप । [केवलाघो_भवति_केवलादी]
(चौर्यप्रवृत्ति का उदय यहीं से हुआ है ।)
हम कितने #धार्मिक हैं , विचार कीजिये ।
।। जय श्री राम ।।
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