Saturday, 2 September 2017

धर्म केवल एक ही है

धर्मान्तरण, धर्मपरिवर्तन या फिर  धर्म बदलना - ये तीनों शब्द आजकल जो तथाकथित हिन्दू मुस्लिम विषय पर प्रयुक्त होते हैं , ये अवधारणा  भ्रामक हैं , क्योंकि   धर्म  का  परिवर्तन नहीं होता ।   सर्वधर्मसमभाव - ये भी  भ्रामक शब्द है । 

जैसे धैर्य , क्षमा, अहिंसा,  आत्मनियन्त्रण, पवित्रता , आदि ये जो धर्म के मौलिक अवयव हैं ,  क्या  ये  स्वयं में अलग-अलग हुआ करते हैं ?  नहीं ।

पहले अधार्मिक था , फिर धार्मिक हुआ - ये तो हो सकता है , पहले धार्मिक था , फिर अधार्मिक हुआ - ये भी हो सकता है , किन्तु पहले धार्मिक था , फिर पुनः धार्मिक हुआ - ये कहॉ से होगा भला ?  ये तो व्यर्थ छलवा मात्र है ।

धर्म का परिवर्तन तो अधर्म के ही रूप में हो सकता है , धर्म का त्याग करते ही  मनुष्य अधर्मी हो जाता है , धर्म के रूप में भला धर्म का परिवर्तन कहॉ से होगा ?

इस्लाम,  इसाई  या बौद्ध - ये मत हैं , ये *धर्म* नहीं हैं । #धर्म शब्द अरबी या  अंग्रेजी नहीं , अपितु #संस्कृत का शब्द है ।

  इन मतों को धर्म इसलिये नहीं कहा जा सकता क्योंकि इनके मत में  धर्म का मूल नहीं है । धर्म का मूल है -  '#वेद'  , [ वेदोsखिलो धर्ममूलम् ]  जब #मूल ही नहीं है तो बात यहीं पर समाप्त हो जाती है। 

वेद को प्रमाण न मानने से ये मत  आस्तिक भी नहीं कहे जा सकते । ये नास्तिक मत हैं ।( #नास्तिको_वेदनिन्दकः)

अतः  इन इस्लाम व इसाई आदि मतपोषकों  को   #नास्तिक  या #अधर्मी कहना चाहिये ।

।। जय श्री राम ।।

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