धर्मान्तरण, धर्मपरिवर्तन या फिर धर्म बदलना - ये तीनों शब्द आजकल जो तथाकथित हिन्दू मुस्लिम विषय पर प्रयुक्त होते हैं , ये अवधारणा भ्रामक हैं , क्योंकि धर्म का परिवर्तन नहीं होता । सर्वधर्मसमभाव - ये भी भ्रामक शब्द है ।
जैसे धैर्य , क्षमा, अहिंसा, आत्मनियन्त्रण, पवित्रता , आदि ये जो धर्म के मौलिक अवयव हैं , क्या ये स्वयं में अलग-अलग हुआ करते हैं ? नहीं ।
पहले अधार्मिक था , फिर धार्मिक हुआ - ये तो हो सकता है , पहले धार्मिक था , फिर अधार्मिक हुआ - ये भी हो सकता है , किन्तु पहले धार्मिक था , फिर पुनः धार्मिक हुआ - ये कहॉ से होगा भला ? ये तो व्यर्थ छलवा मात्र है ।
धर्म का परिवर्तन तो अधर्म के ही रूप में हो सकता है , धर्म का त्याग करते ही मनुष्य अधर्मी हो जाता है , धर्म के रूप में भला धर्म का परिवर्तन कहॉ से होगा ?
इस्लाम, इसाई या बौद्ध - ये मत हैं , ये *धर्म* नहीं हैं । #धर्म शब्द अरबी या अंग्रेजी नहीं , अपितु #संस्कृत का शब्द है ।
इन मतों को धर्म इसलिये नहीं कहा जा सकता क्योंकि इनके मत में धर्म का मूल नहीं है । धर्म का मूल है - '#वेद' , [ वेदोsखिलो धर्ममूलम् ] जब #मूल ही नहीं है तो बात यहीं पर समाप्त हो जाती है।
वेद को प्रमाण न मानने से ये मत आस्तिक भी नहीं कहे जा सकते । ये नास्तिक मत हैं ।( #नास्तिको_वेदनिन्दकः)
अतः इन इस्लाम व इसाई आदि मतपोषकों को #नास्तिक या #अधर्मी कहना चाहिये ।
।। जय श्री राम ।।
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