Saturday, 2 September 2017

गीता में वर्ण व्यवस्था

चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः  - ऐसा गीता में भगवान् कृष्ण ने  कहा है ।

अर्थात् हे अर्जुन ! मैंने गुणविभाग और कर्मविभाग  के अनुसार चार वर्णों का सृजन किया है ।

चार वर्ण  जब कृष्ण ने सृजन किये तो कृष्ण के पूर्वजों का वर्ण  किसने सृजन किया ? अर्थात्  स्पष्ट है कि क्योंकि कृष्ण स्वयं भगवान् नारायण हैं और वर्ण व्यवस्था सृष्टि के साथ आदि से ही प्रादुर्भूत होकर वर्तमान हुई है, सो यहॉ कृष्णावतारी  भगवान् नारायण  सृष्टि के आदि की बात कर रहे हैं कि सृष्टि के आदि में उन्होंने अपने गुणावतार ब्रह्मा के माध्यम से ऐसा किया, जैसा कि वेदों में भी  सृष्टि प्रक्रिया सन्दर्भ में कहा गया है ब्राह्मणोsस्य मुखमासीद्बाहू राजन्यः कृतः आदि ।।

  कोई प्राणी  किसी वर्ण में जन्म लेता है तो उसमें  एक तो उसके  पूर्व जन्म के कर्म कारण होते हैं  दूसरा प्रकृति के तीन गुण ( सत्त्व  , रज और तम )।

तीन गुणों से तो उसके शरीर का निर्माण होता है और कर्मों से उसके  वर्ण का निर्धारण ।

और  गुणों और कर्मफलों की ये सब  प्राकृतिक प्रक्रिया  ईश्वर के ही संचालन में सम्पन्न  होती है ,  यही है चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः  ।

गीता सा कोई ज्ञान नहीं ।
कृष्ण सा कोई महान् नहीं ।।

।। जय श्री राम ।।

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