#संन्यास_आश्रम में केवल #ब्राह्मण का अधिकार है । क्षत्रिय और वैश्य के लिए संन्यास आश्रम विहित नहीं है । उनको आजीवन शास्त्रोक्त नित्यादिकर्म करते हुए जीने की इच्छा करनी चाहिये ।
#इतरवर्णापेक्षया_वा_यावज्जीवश्रुतिः । #न_हि_क्षत्रियवैश्ययोः_पारिव्राज्यप्रतिपत्तिरस्ति ।
(बृहदारण्यकोपनिषत्-शाङ्करभाष्यम् ४|५|१२)
~ श्री आद्य शंकराचार्य ।।
( चित्र : पराम्बा भगवती बडीमालिका को जाते क्षत्रियवंशज। हिमालयस्थ सुदुर पश्चिम नेपाल में ये प्राचीन परम्परा अद्यावधिपर्यन्त वर्तमान है कि जिनको पुत्र(संसार) चाहिये वे मालिका जाते हैं तथा जिनको आत्मा चाहिये वे कैलाश । )
(श्री आद्य शंकराचार्य सन्देश की पोस्ट से)
।। जय श्री राम ।।
शांकर परम्परा उच्छेदकों की समीक्षा -
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#श्री_अखण्डानन्द_सरस्वती_जी : जरा आप इनका कारनामा देखिये -
ये महाशय स्वयं शांकर परम्परा में सन्यस्त होकर एक #वैश्य शंकरानन्द को संन्यास दिये । गीताप्रेस गोरखपुर को जानने वाले अच्छी तरह जानते होगे कि कौन राधेश्याम खेमका !
(#कथनप्रमाण : -
पुस्तक : करपात्री स्वामी : एक जीवन दर्शन, पृष्ठ ४७ ।
लेखक : श्री राधेश्याम खेमका ।
प्रकाशन : श्री सीताराम सेवा ट्रस्ट , वाराणसी ।।)
ध्यान दें -
जबकि #श्री_आद्य_शंकराचार्य ने स्पष्ट लिखा है कि वैश्य को अधिकार ही नही होता संन्यास का -
👉न हि क्षत्रियवैश्ययोः पारिव्राज्यप्रतिपत्तिरस्ति👈 (बृहदारण्यकोपनिषद् ४|५|१५)
अपितु केवल ब्राह्मण को ही संन्यास का अधिकार होता है -
👉ब्राह्मणानामेवाधिकारो व्युत्थाने, अतो ब्राह्मणग्रहणम् । 👈 (बृहदारण्यकोपनिषद् ३|५|१)
।। जय श्री राम ।।
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