Saturday, 2 September 2017

ब्राह्मण का स्वाभाविक धर्म


ज्ञान और अनुभव  : यह एक ब्राह्मण का स्वाभाविक धर्म है ।☝️

वेद पर विश्वास  :  यह भी ब्राह्मण का स्वाभाविक धर्म है । ☝️

तपस्या और आत्मनियन्त्रण  : यह भी ब्राह्मण का स्वाभाविक  धर्म है । ☝️

अपना स्वाभाविक धर्मपालन करने पर कर्त्ता को  विषकीट की भॉति दोष नहीं लगता  ।।

सत्य को जानना और बताना  : यही ब्राह्मण का लक्षण है ।

सत्य को देना और बताना  : यही ब्राह्मण की पहचान है  ।

अपने धर्म में मरना भी कल्याणकारक है , दूसरे का धर्म भय देने वाला है ।

यह छः ब्राह्मण के धर्म है -

१.अध्ययन ।

२.अध्यापन ।

३.दान । (दान देना )

४.प्रतिग्रह। (दान लेना )

५.यजन । (यज्ञ करना )

६.याजन । (यज्ञ कराना )

इन छः  में से " दान"  -   ये  सबसे  कठिन व्रत है ।  आजकल हर कोई (वर्ण) दान ले रहा है  ,  दान देने में भी विचार नहीं किया जा रहा   और अन्ततः सबको  लेने के देने पड़े हैं  ।।

  दान सबको ( हरेक वर्ण को ) नहीं पचता  ,  ब्राह्मण को भी विशेष तप करना पड़ता है , अन्यथा उसे भी अपच हो जाता है । इसलिये #दान -धर्म का पालन बहुत सोच -समझकर करना क्योंकि  ये  'दा' धातु छेदने /काटने अर्थ में  है ,  ये  दान तीक्ष्ण  असि (तलवार)  है ।

।। जय श्री राम ।।

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