Saturday, 2 September 2017

शास्त्रीय पशुबलि

पशु बलि

इसमें भी प्रथम पशु को  इस प्रक्रिया का अवबोध कराया जाता था और , उसकी सहमति ली जाती थी  ।
अब लगा लीजिये अनुमान । कितनी महान् प्रक्रिया रही बलि ।।
सहमति +  सुख + उन्नति  - ये तीन पशु को  होना चाहिए  ।
पहले पशु की सहमति आवश्यक होती है ।

शंका - इसमे दो शंकाओ का समाधान कीजिये भ्राता🙏🏻
एक तो यह ज्ञात कैसे होगा कि पशु ने स्वीकृति दी है
दूसरा उसे पीड़ा नही होगी
तीसरा उसे स्वर्ग या उत्तम योनि ही मिलेगी, मै जानता हूं शास्त्र कभी गलत नही कहते फिर भी जिज्ञासा है अगर अनुचित न हो तो समाधान करें🙏🏻

समाधान - मन्त्र की सामर्थ्य से अष्टभाव के लक्षणों का दर्शन होता है ।
और मन्त्र के प्रभाव से जब संत ज्ञानेश्वर एक  भैंसे से वेदपाठ करवा सकते हैं तो वेदज्ञ मनीषि अनुमोदन क्यों नहीं ।
अष्टभाव? स्वेद , कम्प , पुलकादि भाव

जी, नरबलि के के लिए कैसे पुरुष का चयन होता था, क्या ब्राह्मण ,स्त्री और बालक की भी बलि प्रशस्त थी ?
हां , उत्तम कुल का हीनांगवर्जित  श्रेष्ठ नर प्रशस्त होता  है  ।
अचिन्त्यो हि मणिमन्त्रौषधयः प्रभावः ।।
जिस बालक की बलि दी जाती थी , उसे विशेष विधि  से स्नानादि कराया जाता  है
बलि दान के बाद देह का क्या होता था?
गणों का भाग
अनेक यज्ञ ऐसे होते हैं , जिनमें बलि दिये जाने वाले पदार्थ के मांस मज्जा आदि का हवन होता है
कुछ अनुष्ठानों में गणों के नाम से उसे छोड दिया जाता है
मेध शब्द से सर्वत्र पशु बनाना  ही नहीं अभिप्राय होता
अन्यथा तो सर्वमेध यज्ञ में यज्ञकर्ता व यजमान सहित सभी की बलि होने लगेगी
बलि  दोनों को होती है , देवताओं को भी प्रेतों को भी ,
प्रेतादि के उपासक प्रेतों को प्राप्त होते हैं , देवताओं के देवताओं को ।

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