=======।। अद्वैतम् ।।=======
#द्वाभ्यां_प्रकाराभ्यामितं_ज्ञानं_द्वीतम् , #द्वीतमेव_द्वैतम् , #न_द्वैतम् #अद्वैतम् ।
यथा -
#द्विधेतं_द्वीतमित्याहुस्तद्भावो_द्वैतमुच्यते । ( बृहदा० उप० भा० वा० ४|३|१८०७)
#न_विद्यते_द्वैतं_द्विधाभावो_यत्र_तत् (अद्वैतम्) । (सि०बि०१०)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
#सिद्धान्त - द्वैताभाव को "अद्वैत" कहते हैं ।
#पूर्वपक्ष - यदि द्वैत के अभाव को अद्वैत कहते हैं , तब तो ब्रह्म में द्वैत का अभाव है और वह अधिकरण रूप नहीं है , तब तो निर्धर्मक ब्रह्म सिद्ध नहीं हुआ ।
#उत्तरपक्ष - जैसे बौद्ध तथा प्राभाकर अभाव मात्र को और नैयायिक अभाव में स्थित अभाव को अधिकरण मानते हैं , वैसे ही हम भी अभाव को अधिकरण रूप ही मानते हैं ।
#पूर्वपक्ष - यदि द्वैत के अभाव को अद्वैत कहते हैं , तब तो प्रतियोगी रूप से द्वैत भी मानना पडेगा !
#उत्तरपक्ष - जैसे भ्रम स्थल में असत् रजत का ही "नेदं रजतम्" निषेध होता है , वैसे ही असत् या कल्पित द्वैत का ही निषेध होता है । अभाव ज्ञान में प्रतियोगी का सामान्य ज्ञान अपेक्षित है , प्रतियोगी की प्रमा नहीं । यहाँ द्वैत का भ्रमात्मक ज्ञान है ही, फलतः द्वैताभाव को अद्वैत कहना समुचित ही सिद्ध हुआ ।
।। जय श्री राम ।।
No comments:
Post a Comment