किसी भी प्राणी की हिंसा न हो ( #मा_हिंस्यात्_सर्वभूतानि) - ये हमारे सनातन वैदिक धर्म का मूलभूत सिद्धान्त है । किन्तु लोकसामान्य में सामान्यतया जब कोई प्राणी भोजन में प्रवृत्त होता है , तो वह भोजन पाप से असंस्पृष्ट नहीं होता अतः हमारे धर्मशास्त्रों ने यज्ञविद्या का उपदेश हम सभी सनातनधर्मावलम्बियों को प्रदान किया है ।
हमारे सनातन वैदिक धर्म का ये स्पष्ट सिद्धान्त है कि कथित शाकाहार हो या मांसाहार - यदि वह शास्त्रीय विधि -निषेध प्रधान नियमों का पालन करके किया तो वह #धर्म है , यदि शास्त्रविरुद्ध रीति से किया जाये तो #पाप है ।
जीवो जीवस्य जीवनम् - इस नियमानुसार जीव ही जीव का जीवन होता है किन्तु किस जीव का कौन सा जीव जीवन है ? - इसकी मर्यादा श्री ब्रह्मा जी ने सृष्टि के आदि में उपदेश की , जिसे हमारे धर्मशास्त्रों में #भक्षाभक्ष_विधान कहा गया है ।
सनातन वैदिक धर्म हमें शाकाहारी या मांसाहारी नहीं बनाता , अपितु #यज्ञशिष्टाहारी बनाता है । अज्ञानी धर्माचार्यों के बाहुल्य के कारण सनातन हिन्दू समाज में ये भ्रम फैल गया कि शाकाहार माने धर्म , मांसाहार माने अधर्म , किन्तु सनातन वैदिक धर्म में धर्म की अवधारणा तो इस कथित धर्माधर्म से अन्य ही है, यहॉ तो #यागादिरेव_धर्मः का सिद्धान्त प्रतिपादित हुआ है ।
#यज्ञशिष्टाशिनः_सन्तो_मुच्यन्ते_सर्वकिल्बिषैः ।
#भुञ्जते_ते_त्वघं_पापा_ये_पचन्त्यात्मकारणात् ।।
( श्रीमद्भगवद्गीता ३|१३)
।। जय श्री राम ।।
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