Saturday, 2 September 2017

शास्त्र का महत्व

देश की , धर्म की , समाज की , हिन्दू की , गौ की, सभ्यता की, संस्कृति की, संस्कारों की  , समस्त प्राणियों की ,  समस्त विश्व की , समस्त ब्रह्माण्ड की   रक्षा- सुरक्षा केवल और केवल  वेद-शास्त्र के मार्ग  पर चल कर ही होगी ।

आत्मकल्याण एवं लोककल्याण - दोनों की प्रतिष्ठा (आधार) 'शास्त्र' है । समस्त पुरुषार्थों ( धर्म, अर्थ, काम  एवं मोक्ष)   का मूल शास्त्र ही  है ।

शास्त्रों के बताये मार्ग पर बिना कोई प्रतिकूल तर्क किये सहर्ष उन वचनों को शिरोधार्य  करने पर सनातन  वैदिक धर्म  की प्रतिष्ठा  हो जायेगी ।

अतः हम बारम्बार यही सन्देश देते हैं कि  ,  श्रुति -स्मृतिमय   वैदिक शास्त्रों को शिरोधार्य कीजिये  । अन्धपरम्परा न्याय के उदाहरण स्वरूप  भीड़तन्त्रवादी मत बनिये,  सुदृढ़ शास्त्रवादी  बनिये ।

संसार को शास्त्र- परम्परा के पीछे रखिये , शास्त्र  को संसार के आगे रखिये ।

यः कर्तव्याकर्तव्यज्ञानकारणं  विधिप्रतिषेधाख्यं शास्त्रविधिं त्यक्त्वा कामप्रयुक्तः सन् वर्तते , स पुरुषार्थयोग्यतां नावाप्नोति । नाप्यस्मिंल्लोके सुखं  नापि प्रकृष्टां गतिं स्वर्गं मोक्षं वा ।।

- श्रीआद्यशंकराचार्यः ।।

।। जय श्री राम ।।

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