देश की , धर्म की , समाज की , हिन्दू की , गौ की, सभ्यता की, संस्कृति की, संस्कारों की , समस्त प्राणियों की , समस्त विश्व की , समस्त ब्रह्माण्ड की रक्षा- सुरक्षा केवल और केवल वेद-शास्त्र के मार्ग पर चल कर ही होगी ।
आत्मकल्याण एवं लोककल्याण - दोनों की प्रतिष्ठा (आधार) 'शास्त्र' है । समस्त पुरुषार्थों ( धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष) का मूल शास्त्र ही है ।
शास्त्रों के बताये मार्ग पर बिना कोई प्रतिकूल तर्क किये सहर्ष उन वचनों को शिरोधार्य करने पर सनातन वैदिक धर्म की प्रतिष्ठा हो जायेगी ।
अतः हम बारम्बार यही सन्देश देते हैं कि , श्रुति -स्मृतिमय वैदिक शास्त्रों को शिरोधार्य कीजिये । अन्धपरम्परा न्याय के उदाहरण स्वरूप भीड़तन्त्रवादी मत बनिये, सुदृढ़ शास्त्रवादी बनिये ।
संसार को शास्त्र- परम्परा के पीछे रखिये , शास्त्र को संसार के आगे रखिये ।
यः कर्तव्याकर्तव्यज्ञानकारणं विधिप्रतिषेधाख्यं शास्त्रविधिं त्यक्त्वा कामप्रयुक्तः सन् वर्तते , स पुरुषार्थयोग्यतां नावाप्नोति । नाप्यस्मिंल्लोके सुखं नापि प्रकृष्टां गतिं स्वर्गं मोक्षं वा ।।
- श्रीआद्यशंकराचार्यः ।।
।। जय श्री राम ।।
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