/// गीता में अन्न के विषय में कहा है , मांस अन्न नहीं है //// यह भ्रम भी आपका संस्कृत के भक्षणार्थक अद् धातु से विनिर्मित #अन्न शब्द के अर्थ एवं तात्पर्य को ठीक से न समझने से आपको हुआ है । अन्न शब्द अनेकार्थक होता है तथा शरीर , प्राण आदि विविध अर्थों में प्रयुक्त होता है । विशेष बोध हेतु तैत्तिरीयोपनिषद् की भृगुवल्ली का द्वितीय अनुवाक अनुशीलन करें ।
किसका क्या अन्न है क्या नहीं , ये तुम्हारी मनोवृत्ति से निर्णय नहीं होगा अपितु शास्त्र से निर्णीत होगा |
प्राणस्यान्नमिदं सर्वं प्रजापतिरकल्पयत् |
स्थावरं जङ्गमं चैव सर्वं प्राणस्य भोजनम् || (मनुस्मृतिः ५|२८)
चराणामन्नमचरा दंष्ट्रिणामप्यदंष्ट्रिणः |
अहस्ताश्च सहस्तानां शूराणां चैव भीरवः || (मनुस्मृतिः ५|२९)
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