प्रश्न :- क्या शिव लिंग विहीन हैं ? क्योंकि उनका लिंग ऋषियों के श्राप के कारण कट कर धरती पर गिरा! यह शिव पुराण में लिखा है और फिर पृथ्वी पर चारों ओर आग लग गई, अंत में ऋषियों की प्रार्थना पर माता पार्वती ने इस लिंग को अपनी योनि में धारण कर लिया, तब से इस योनि में समावेशित लिंग पर हिन्दू जल चढ़ाते हैं, अर्चना करते हैं लेकिन प्रश्न के अनुसार क्या शिव का लिंग दुबारा उनके शरीर से जुड़ा? कहीं इसका उल्लेख नहीं है!
और लिंग विहीन व्यक्ति को क्या कहते हैं? मुझे यह लिखने की आवश्यकता नहीं!
उत्तराखंड के जागेश्वर धाम में लिंग कट कर गिरा था, यह इस स्थान की ऐतिहासिकता है तो लिंग जुड़ने का कौन सा स्थान है और क्या किसी पुराण में इसका उल्लेख है?
अस्तु , अब मुहतोड़ जवाब सुनिए –
उत्तर => आपके इस बालप्रश्न से ही स्पष्ट है कि आपको “शिव ” की कोई जानकारी नहीं कि शिव कहा किसे जाता है ?? क्या किसी शरीरधारी प्राणी को या फिर किसी अप्राकृतिक तत्व को !!! कभी गुरुग्रंथ साहिब के अलावा अपने मूल सनातन धर्म के शास्त्रों का मुख दर्शन भी किया होता तो ये समस्या ना होती |
आपके प्रश्न से स्पष्ट है कि आपको इतना भी नही मालूम कि सनातन धर्म में वर्णित “शिव” किसी सरदार अजमेर सिंह जी की तरह हाड-मांस का भौतिक शरीर नहीं है , जिस पर कि भौतिक शरीर के धर्म जैसे जुड़ जाना , कट जाना अथवा कट कर जुड़ना , ना जुड़ना जैसे गुण-दोष उसमे प्रसक्त होवें |
इसीलिये महाभारत में कहा गया है –
अचिन्त्याः खलु ये भावाः न तांस्तर्केण योजयेत् |
प्रकृतेस्तु परेतत्वमचिन्त्य इत्यभिधीयते ||
इसलिये प्राकृतिक वस्तु में ही प्रकृति के नियमों का आग्रह किया जा सकता है , अप्राकृतिक में नहीं | वैसे भी दार्शनिक दरिद्रता के चलते त्रिगुणातीत विशुद्ध सत्त्व देह को समझना आपके वश की बात नहीं , ये तो हो गयी पहली बात |
दूसरी बात यह है कि – शिव का जो शरीर शास्त्रों में वर्णित है अथवा चित्रों में दर्शाया जाता है , वह किस चीज का बना है ? यह भी समझना आवश्यक है –
गोस्वामी तुलसीदास जी ने बड़े ही सरल शब्दों में भगवान के शरीर का रहस्य स्पष्ट किया है –
चिदानंदमय देह तुम्हारी | विगत विकार जानि अधिकारी ||
अर्थात् भगवान का शरीर चिदानंदमय है और समस्त विकारों से परे है , इसे अधिकारी व्यक्ति ही समझ सकते हैं |
श्री ब्रह्मसंहिता कहती है –
अंगानि यस्य सकलेंद्रियवृत्तिमन्ति ० अर्थात् भगवान के चिन्मय शरीर की प्रत्येक इन्द्रिय, स्वयं में पूर्ण , समान गुण धर्म युक्त एवं चिन्मय है, इसलिए चिन्मयत्वात् उनकी इन्द्रियाँ नित्य हैं |
एक नित्य, अचल वस्तु पर यह युक्तता अथवा विहीनता के प्रश्न खड़े करना ही आपका बौद्धिक स्तर दर्शाता है |
भगवान शिव स्वयं में नित्य पूर्ण हैं, ऐसा स्वयं उसी शास्त्र ने माना है , जिस कथांश से आप यह बालप्रश्न तैयार करके लाये हो |
तत्वतः भगवान सजातीय , विजातीय और स्वगत – इन तीन प्रकार के भेदों से सर्वथा रहित होते हैं | इसलिए तत्वतः उनके शरीर के किसी भी एक अंग का दुसरे अंग से कोई भेद नहीं होता |
जैसे लौकिक उदाहरण से समझाने का प्रयास करो- जैसे अग्नि शिखा से बनने वाली अग्निमय आकृति का अपने में कोई भेद नहीं होता अथवा यदि आप बर्फ का पुतला बनाओ तो उस बर्फ के पुतले की आँख और बर्फ के पुतले का लिंग दोनों ही बर्फ है , ऐसे ही भगवान शिव पूर्णतः चिन्मय ही चिन्मय हैं, उनके शरीर में कहीं कोई भेद नहीं |
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२- उनका लिंग ऋषियों के श्राप के कारण कट कर धरती पर गिरा! यह शिव पुराण में लिखा है और फिर पृथ्वी पर चारों पर आग लग गई, अंत में ऋषियों की प्रार्थना पर माता पार्वती ने इस लिंग को अपनी योनि में धारण कर लिया, तब से इस योनि में समावेशित लिंग पर हिन्दू जल चढ़ाते हैं, अर्चना करते हैं लेकिन प्रश्न के अनुसार क्या शिव का लिंग दुबारा उनके शरीर से जुड़ा? कहीं इसका उल्लेख नहीं है!
उत्तर=> जैसा की स्पष्ट है ये शिवपुराण की दारुवन से सम्बद्ध कथा है, इसी शिव पुराण की विद्येश्वर संहिता में में शिव का वर्णन करते हुए कहा गया है – शिव के दो रूप है – सकल और निष्कल |
“ब्रह्मभाव” निष्कल रूप है तथा “महेश्वरभाव ” सकल रूप |
आपने चन्द्रमा देखा होगा | यदि द्वितीया आदि तिथियों को चन्द्रमा के एक ओर का भाग ना दिखाई दे तो क्या चन्द्रमा क्या अपने उस भाग से हीन हो जाता है ??????? शिवलिंग का कटना कथन का भी यही तात्पर्य है |
शिव (सकल + निष्कल ) के सकल भाव का लोक में प्रादुर्भूत हो जाना ही शिव लिंग कटना कहने का तात्पर्य है | हमने अभी ऊपर बतलाया है कि अप्राकृतिक लिंग स्वयं में पूर्ण तथा चिन्मय तत्व है ,इसलिए उसकी तुलना चर्म इन्द्रियों से करके उन चर्म इन्द्रियों के गुण- दोषों को शिव लिंग में आक्षेपित नहीं किया जा सकता |
इसलिए जब शिव का सकल भाव (महेश्वर भाव ) ज्योतिर्मय लिंग के रूप में धरती पर गिरा (अवतरित हुआ ) तो पृथ्वी पर चारों तरफ आग लग गयी | इसका रहस्य यह है कि शिव के सकल (कलाओं से युक्त ) लिंग स्वरूप से उनकी अष्ट मूर्तियों में परिगणित अग्नि मूर्ति का प्रादुर्भाव होने लगा | (एक अवतार से दूसरा अवतार ) यह अग्नि संहारिका प्रलयाग्नि है , जो जगत का संहार करती है | इस अग्नि की द्वारा संसार के प्राणियों का मंगल हो , इसके लिए पार्वती ने लिंग को अपनी योनि में धारण कर लिया, यहाँ योनि का मतलब किसी भौतिक स्त्री की योनि नहीं अपितु मद्ब्रह्म ही यहाँ योनि है (मम योनिर्महद्ब्रह्म ० – गीता ) क्योंकि ८ प्रकार की अपरा शक्ति जिसे गीता में भगवान ने भी (भूमिरापोनलोवायुः ० )- गीता में ) वर्णित किया है , वही यहाँ पर पार्वती कही गयी है |
जैसा कि शास्त्र वचन भी है-
माया तु प्रकृतिं विद्धि मायिनं तु महेश्वरम् |
इस कथा के तात्पर्य का स्पष्ट उदाहरण ये धरती है , जो अपने गर्भ में अग्नि को समाये है | समस्त प्राणियों की कारणभूत चैतान्यात्मिका जीवनी शक्ति प्रकृति में ही समाहित है , यही शिवलिंग धारण का रहस्य है |
हम शिव लिंग पर जल चढाते हैं इसका एक मतलब होता है = धरतीमाता जिसने समस्त संसार के जीवन के कारण भूत अग्नि को अपने गर्भ में धारण कर रखा है , उस पर जल वर्षा की भावना अभिव्यक्त करना | ताकि सारी सृष्टि में पञ्च महाभूतों के प्राकृतिक संतुलन के साथ में उनकी प्राणियों के कल्याण के लिए अभिवृद्धि होती रहे | दुग्धादि पंचामृत का तात्पर्य है धरती पर गोवंश का उत्कर्ष रहे , मधु , शर्करादि का भी धन -धान्यादि बहुत उत्कृष्ट भाव सान्निहित है |
आप पूछते हैं कि //क्या शिव का लिंग दुबारा उनके शरीर से जुड़ा? // हम आपसे पूछते हैं अलग ही कब हुआ था जो जुड़ने की जरूरत पड़ जाए ? ये तो सृष्टि के कल्याण के लिए लीलामात्र भगवान ने दर्शाई थी | एक नित्य तत्व से वही नित्य तत्व केवल लीला में ही अलग हो सकता है , वास्तविकता में नहीं | जैसे दिए से दुसरे दिए में अग्नि जलाओ तो क्या दिए की आग समाप्त हो जाती है ?? ऐसे ही अचिन्त्य चिन्मय तत्व भगवान शिव हैं जिनसे अग्नि से अग्नि की भांति संसार के कल्याण के लिए ज्योतिर्मय लिंग का प्रादुर्भाव हुआ है | अग्नि की भांति अपने से पृथक होकर भी वे हमेशा स्वयं में पूर्ण हैं | इसीलिये लिंग के जुड़ने की कथा की भी आवश्यकता नहीं पडी |
धर्म की जय हो !
अधर्म का नाश हो !!
जय श्री राम
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