श्रीमद्भागवत भगवान् व्यासजीकृत है
श्रीमद्भागवत केवल महापुराण नहीं अपितु भगवान् श्रीकृष्णका वाङ्मय स्वरूप ही हैं ।
मेरा उद्देश्य किसी महापुरुषकी निंदा में न होकर श्रीमद्भागवत की स्तुतिमें -
स्वामी दयानन्द सरस्वतीने श्रीमद्भागवतको १३वीं शती की रचना माना है ।
स्वामी दयानन्द श्रीमद्भागवतको गीतगोविन्दके रचियता जयदेवजीके भाई बोपदेवकी रचना कहा है और मिथ्या कहा है ।
स्वामीजी का ये मत सर्वदा निराधार और असङ्गत है ।
प्रथम तो बोपदेवजी जयदेवजी भाई तो क्या देश-गोत्र-काल एक नहीं पृथक् हैं
बोपदेवजी द्रविड़ ब्राह्मण और उनके कविकल्पद्रुमके अनुसार धनेश्वर-वैद्यके शिष्य केशव-वैद्यके पुत्र थे और इनका उपनाम वेद था । जबकि जयदेवजी बंगाली ब्राह्मण और तिन्दविल्व-ग्रामके अधिवासी थे । गीतगोविन्द ग्रन्थके अनुसार उनके पिताका नाम भोजदेव था और माता रामादेवी । जयदेवजी बंगालके राजा लक्ष्मणसेन (११७८-१२०५ ई ) के राजगुरु थे । इधर बोपदेवजी हेमाद्रिके आश्रित थे जिनका काल १२९० ई सन् था ।
अब श्रीमद्भागवत पर चर्चा करते हैं -
बोपदेवजीने श्रीमद्भागवतकी परमहंसप्रिया नामकी टीका लिखी है जिसमें श्रीमद्भागवतके आर्षप्रयोगोंको (छांदसरीतिसे) सिद्ध किया है । अब यदि बोपदेवजी ही श्रीमद्भागवतके रचियता थे तब स्वयं टीका क्यों की ??
उन्होंने परमहंसप्रिया टीका ही नहीं ,भागवतके सम्बन्धमें 'मुक्ताफल' और 'हरिलीला' ये दो ग्रन्थ और बनाये हैं । उन्होंने २६ ग्रन्थ रचे जिनमे भागवत का नाम नहीं है और फिर उन्होंने भागवतमें कहीं भी अपना नाम नहीं दिया ,प्रत्युतः अपनी टीकाके साथ भागवतके प्रथम अध्यायके अन्तमें 'इति श्रीमद्भागवते महापुराणे अष्टादशसाहस्र्यां पारमहंस्यासहितायां वैयासिक्याम् ' लिखकर व्यासजी का ही नाम दिया है ।
अब बोपदेवजीसे पहले की श्रीमद्भागवतके प्रमाण देता हूँ -
बोपदेवजीसे पूर्व श्रीमाध्वमुनि हुए हैं जिन्होंने अपने बनाये भाष्यादिमें श्रीमद्भागवतके प्रमाण उद्धृत किये हैं ,उनका काल ,स्मृत्यर्थसागरके अनुसार शाके सं० ११२२ यानी विक्रम सं० १२५७ है । इनसे भी पूर्ववर्ती श्रीरामानुजाचार्यजीने अपने रामतापिनी के भाष्य तथा सारसंग्रहमें भागवतके श्लोक लिखे हैं ।
।उनसे भी पहले ६वीं ७वीं शतीमें चालुक्य-कलचुरी राजाओं जो वैष्णव थे ने मध्यप्रदेश में अनेकों वैष्णव मन्दिर बनवाए थे जिनकी प्राचीरों पर श्रीमद्भागवतके अनेकों श्लोकोंको अंकित किया है ऐसा ही है एक पुरातात्विक प्रमाण ७वीं शती का शहडोल जिला मध्यप्रदेशका वैष्णव मन्दिर जिसपर चार शिलाचित्र अभी भी विद्यमान हैं । इन चारों शिलाचित्रों में श्रीमद्भागवतके द्वादश स्कन्धों की सम्पूर्ण लीलाके चित्र बने हुए हैं जो कि बोपदेवसे ६०० वर्ष प्राचीन हैं ।
उससे भी प्राचीन भारहुत का स्तूप पर श्रीमद्भागवतकी गजेन्द्र-उद्धार लीला चित्र बना हुआ है जो ई पू २ शतीका है जिससे वो चित्र बोपदेव से १५०० वर्ष पहले का सिद्ध होता है । उससे भी प्राचीन आद्य शङ्कराचार्यजी महाराज जिनका समय स्वयं स्वामी दयानन्द सरस्वतीने विक्रमादित्यसे ३०० वर्ष पूर्व और स्वयं से (१८७५ सत्यार्थ प्रकाश लिखने के समय) से २२०० वर्ष पूर्व लिखा है अर्थात् ई पू ४ शती । प्रमाणिक तिथि ५०७ -४७५ ई पू सिद्ध है । आद्य शङ्कर भगवत्पादने अपने 'चतुर्दशमतविवेक' में 'परमहंसधर्मो भागवते पुराणे कृष्णेनोद्धवायोपदिष्ट:' यानी इस परमहंस-धर्मका भागवतपुराणमें श्रीकृष्णने उद्धवके प्रति उपदेश किया है ,ऐसा लिखा है । इसके सिवा उन्होंने श्रीविष्णुदिव्यसहस्रनाम के भाष्यमें कई स्थानोंपर भागवतके श्लोक उद्धृत किये हैं । ५०९-४७५ ई पू भगवत्पाद बोपदेव से १८०० वर्ष पूर्व के भागवत से परिचित हैं ।
उनके गुरु श्रीगौड़पादचार्यजीने भी 'पञ्चीकरण व्याख्यामें 'जगृहे पौरुषं रूपं भगवान् महदादिभि: ' यह भागवत का श्लोक उद्धृत किया है । उनसे भी पूर्ववर्ती भागवत पर हनुमती और चित्सुखी नामकी टीकाएँ हैं , इससे श्रीमद्भागवत बोपदेव जी से भी २००० वर्ष पूर्व (बोपदेव जी१२९०-२००० वर्ष पूर्व ७००ई पू ) होना सिद्ध होता है । भागवत ७०० ईसा पूर्व विद्यमान होने के प्रमाण मिलते हैं । तब श्रीमद्भागवतकी रचना कब हुई ??
सिंधु-सरस्वती सभ्यता से प्राप्त एक शिलाचित्र जिसमे भगवान् बालकृष्ण दो वृक्षों (यमलार्जुन ) को ऊखल से खीचते हुए दर्शाये गए हैं जो २६०० ई पू का है ! जिससे ये सिद्ध होता है कि श्रीमद्भागवत की कथा से लोग२६०० ई पू (४६०० वर्ष पूर्व ) में परिचित थे अतः श्रीमद्भागवत ४६०० वर्ष पूर्व ही रची गयी थी और शास्त्रोंके अनुसार श्रीमद्भागवत ३०४१ ई पू में श्रीशुकदेवजीने सार्वभौम सम्राट परीक्षित को सुनाई थी । इस प्रकार यह भली भाँती सिद्ध हो जाता है कि श्रीमद्भागवत वेदव्यासजी श्रीकृष्णद्वैपायनकृत ही है ।
जय श्रीकृष्ण ...... <3
बहुत-बहुत धन्यवाद!
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