मनुष्य असत्य बोलकर संसार को तो भ्रमित कर सकता है, किन्तु दैवीय शक्तियों को नहीं । संसार के सम्मुख खूब दिखावा कर सकता है किन्तु दैवीय शक्तियॉ जानती हैं कौन क्या है क्या नही । इस संसरणात्मक अनित्य संसार में किसी न किसी निश्चित समय तक ही उसका पाखण्ड रहता है , तदनन्तर जल में खींची गयी रेखा की भॉति वह साम्राज्य विलुप्त हो जाता है ।
ये संसार दैवीय शक्तियों से चल रहा है , इसका एक एक अणु शक्तिमय है ।
इसलिये यहॉ विजय अन्ततः सत्य की , धर्म की , ज्ञान की ही होती है और जो धर्म की अवहेलना करते हैं , उनको इहलोक या परलोक में कठोर दण्ड अवश्य मिलता है , दिव्य शक्तियॉ किसी का कोई लेन-देन अधूरा नहीं रखतीं ।
#ते_ध्यानयोगानुगता_अपश्यन्_देवात्मशक्तिं_स्वगुणैर्निगूढाम् ।
(श्वेताश्वतरोपनिषत् १|३)
अतः जो विद्वान् पुरुष हैं , उनको सदैव शास्त्र के मार्ग पर ही चलना चाहिये ।
।। जय श्री राम ।।
No comments:
Post a Comment