यदि #द्विज (ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य) नित्य #संध्या उपासना नहीं करते तो वे :--
√ जीवित रहते हुए शूद्र सम होते है।
√ तथा मृत्यु के बाद कुत्ते आदि की योनि को प्राप्त करते है।
#संध्या_येन_न_विज्ञाता_संध्या_येनानुपासिता।
#जीवमानो_भवेच्छूद्रो_मृत:#श्वा_चाभिजायते।।
______ (दे.भा. ११/१६/७)
#ब्राह्मण_क्षत्रिय_वैश्य_यदि_संध्या_न_करें_तो_वे_अपवित्र_हैं।
ऐसे अपवित्र, विकर्मस्थ, पापी द्विजों को किसी भी पुण्यकर्म के करने का फल प्राप्त नहीं होता।
#संध्याहीनोशsशुचिर्नित्यमनर्ह:#सर्वकर्मसु।
#यदन्यत्_कुरुते_कर्म_न_तस्य_फलभाग्भवेत्।।
____ दक्षस्मृ. २/२७
विप्र रूपी वृक्ष का तो यह संध्या मूल है।👍
>>>>>> #पौरोहित्य कर्म करने बाले ब्राह्मणों को संध्याहीन द्विजों से दान नहीं लेना चाहिए। लेने पर दोनों दाता व ग्रहीता नरकगामी होगा।
👉 संध्याहीन द्विज के दान को हमारी लोकभाषा में #डोगरदान कहतें हैं।👍
किया न किया तुल्य होता है।
जय श्री राम।।
यज्ञ दत
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