जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद् द्विज उच्यते।
वेदपाठाद् भवेद् विप्रः ब्रह्म जानाति ब्राह्मणः।।
इसके आधार पर यदि आप इसका ये अर्थ करतें हैं कि वर्ण कर्म के द्वारा कोई भी बदल सकता है । तो इस श्लोक का ये अर्थ बिल्कुल भी नहीं है ।
जन्मना जायते शूद्र: ....... से ये नहीं हो जाता कि जन्म से सभी शूद्र हैं |
यदि सभी जन्म से शूद्र होते हैं तो -
#वैदिकै: #कर्मभि: #पुण्यैर्निषेकादिद्विजन्मनाम्|
#कार्य: #शरीरसंस्कार: #पावन: #प्रेत्य_चेह_च ||
इस मनुस्मृति वचन की व्यर्थता होगी | क्योंकि यहां गर्भाधानादि संस्कार द्विजों के लिए विहित है| नामकरण में भी मांगल्यं ब्राह्मणस्य स्यात् ........ इत्यादि | अपि च - शर्मवद् ब्राह्मणस्य स्यात् ..... आदि स्मृतिवचन भी व्यर्थ हुए | यत: नामकरण 10 वें दिन किया जाता है |
अत: इसका मनुस्मृति सम्मत अर्थ ऐसा करना चाहिए -
#जन्म_से_सभी_शूद्रवत_हैं , #अर्थात्_वेद_के_अनधिकारी_हैं_किन्तु_संस्कार_होने_से_द्विज_वेद_का_अधिकारी_होता_है ।
मनुस्मृति सम्मत अर्थ इसलिए करना चाहिए क्योंकि -
#मनुस्मृति_विरुद्धा_या_सा_स्मृतिर्न_प्रशस्यते कहा गया है , कोई भी स्मृति मनुस्मृति का बाध नहीं कर सकती |
#सर्वधर्ममयो_मनु:
नोट - यहां सत्य का मण्डन मात्र किया है | इसे विवाद से न जोडें | कलह मूर्ख का स्वभाव है | बुद्धिमानों का शास्त्रविनोद |
जय श्री राम
Sorry Sir, with due respect, your interpretation is incorrect.
ReplyDeleteThe shlok is taken from Skand Purana, its meaning in letter and spirit is as follows:
In letter:
जन्मना जायते शूद्रः = By Birth, is born, Shudra = Dhatu in shlok refers to 'third person' which means in general 'A person is born as Shudra'.
संस्काराद् द्विज उच्यते।= From noble sacraments, second birth (of person) is pronounced.
वेदपाठाद् भवेद् विप्रः = By studying Vedas, (person) becomes 'possessor of knowledge'.
ब्रह्म जानाति ब्राह्मणः = The creator (supreme knowledge) is known by Brahmana.
Compiling all four steps together so that meaning, in letter and spirit, is in continuation:
A person is born as Shudra by birth, he takes second birth when noble sacraments (commencement of study) is performed.
He becomes knowledgable and learned when he has studied Vedas, and he becomes Brahman when he has known the Brahma, the ultimate and the supreme.
These are actually steps in process of becoming the 'true' Brahaman not limited to anyone, irrespective to his origin.
Hope it is clear.
U R right. विश्वामित्र क्षत्रिय कर्म से ऋषि , विदुर दासी पुत्र कर्म से नीति निपुण मंत्री, वेदव्यास शूद्र श्रीमद्भ भागवत के रचयिता,शूद्र रत्नाकर (महर्षि वाल्मीकी) कुछ लोग अभी भी पूर्वाग्रह में पड़े हैं। वर्ण पर किसी का एकाधिकार नहीं है।
DeleteAgree
DeleteAbsolutely right
Deleteसही व्याख्या गुप्ता जी
Deleteये लोग नव हिन्दू है
सही व्याख्या गुप्ता जी
Deleteये लोग नव हिन्दू है
क्षमा कीजिए बन्धु, लगता है आपने मनुस्मृति को अपने दुराग्रहों के हिसाब से ही समझा है। जन्मना जायते शूद्रः--का सही अर्थ वही होगा, जो श्लोक के शब्दार्थ के हिसाब से बनता है। आपने सही अर्थ को अपने हिसाब से मोड़ने के लिए जो श्लोक प्रस्तुत किए हैं, उनका भी सन्दर्भ बचकाना है। मनुस्मृति एक महान् ग्रन्थ है, पर दुर्भाग्य से आप जैसे पूर्वग्रहग्रस्त लोगों ने इसे दकियानूसी बना दिया है।
Deleteक्षमा कीजिए बन्धु, लगता है आपने मनुस्मृति को अपने दुराग्रहों के हिसाब से ही समझा है। जन्मना जायते शूद्रः--का सही अर्थ वही होगा, जो श्लोक के शब्दार्थ के हिसाब से बनता है। आपने सही अर्थ को अपने हिसाब से मोड़ने के लिए जो श्लोक प्रस्तुत किए हैं, उनका भी सन्दर्भ बचकाना है। मनुस्मृति एक महान् ग्रन्थ है, पर दुर्भाग्य से आप जैसे पूर्वग्रहग्रस्त लोगों ने इसे दकियानूसी बना दिया है।
DeleteCorrect
DeleteAs such all smriti text are for specific time region and conditions. Only shruti texts are timeless but needs interpretations for different time by authoritative people.
DeleteWrong isme ek baar galat hai
DeleteVery well Sourabh Ji!! Completely agree with you. Thanks for the true interpretation.
ReplyDeleteYes Sourav ji your interpretation is completely correct. Varna is by nature of work only some caste supremists are trying to corrupt it's meaning.
ReplyDeleteवर्ण पर एकाधिकार नहीं मानते हैं फिर भी एकाधिकार जमाने का प्रयास कर रहे हैं! यह कैसा विरोधाभास है? यदि सभी ब्राह्मण बन जाएंगे तो क्या समाज चल पाएगा कोई एक भी व्यवस्था ऐसी है। क्या कोई संस्था में सभी का एक ही कार्य हो तो क्या वह संस्था चल पाएगी? इसलिए सनातन धर्म की अद्भुत वर्ण व्यवस्था की प्रांसगिकता को समझने का प्रयास करें। षड्यंत्र रचने वालो से सावधान रहें।
ReplyDeleteAap kaa soch hi sankuchit lag raha hi.
DeleteVarna vyavasthaa ok Ghaneebhav karke kula vyavasthaa kardiya hain, vedon me jo bhi bola voh varna vyavasthaa hi, jaati vyavastha nahi hai
Brahman banne kaa matalan yeh nahi hain ki sab apni apni vritti chod kar yagnya yagadi kratu karne shuru karenge, its ultimate knowledge, the realization that the 'I' itself is God and took these many forms, and doing what we should be doing, one can be a brahmin and do his professiona it's about the realization, not about birth, shaayad aap Mahabharat mein 'dharam vyaad" ka Itihas padha nahi, aap zaroor padhiye, aap ko samajh mei aayekga ki, ek gruhini, ek kasai kaise alone aap ko swayam unke dharam karte huye gyaan prapti ki aur ek Tapasya kia hue brahman ki aaknhe khulne ki madat kaise ki. .
Jai Hind. .
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Deleteसब ब्राह्मण बनेगे तभी जब वह ब्राह्मण के कर्म करेंगे। और जो ब्राह्मण के कर्म नहीं करेंगे वह शूद्र बनेगे चाहे वह ब्राह्मण के घर जन्मे हों। तुम क्यों तनाव लेते हो।
DeleteYe kha ka shlok hai
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ReplyDeleteजन्मना जाते शूद्र :: किस अध्याय का कौन से नंबर का श्लोक है
ReplyDeleteमनुस्मृति और स्कंद पुराण दोनो में है साथ साथ भगवद्गीता के 4वें अध्याय के 13 वां श्लोक भी चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।
Deleteतस्य कर्तारमपि मां विद्धयकर्तारमव्ययम् ।।
अर्थ : मेरे द्वारा चार वर्णों की रचना गुण व कर्मों के आधार पर की गयी है, फिर भी तू मुझ अविनाशी को अकर्ता ही जान ।।
Sab moh maya prabhu satya batana koi nhi chaahta
ReplyDeleteSab apne hit ki baat karte hain
Jisme hit siddha ho wo uske liye shi
And no one is idle in this world exception exist everywhere,
Pagal ho aap uper wale ne to janwar ke sath v bhedbhav na Kiya aur tum sikha rhe ho jatiwad failana in Shree Ram Ko kalankit kar rhe ho tum log jinhone sabri ke jhute bair khaye the
ReplyDeleteJati shbd k koi ullekh nai hai...varn vyvstha thi jo ki vyakti k karam pe adharit thi...jo bhi ved puran me nipud hoga jisse bhrhm ka gyan hoga wo Brahman kahlayega wo koi bhi ho skta..jati sirf 2 hi thi ek stri jati or purush jati
ReplyDeleteशास्त्रो को समझने के लिए हमारा दृष्टिकोण भी वैसा होना अतिआवश्यक हैं जैसा कि रचनाकार का हुआ होगा परन्तु उन जैसी पवित्रता पाने के लिए तप का अनुष्ठान अतिआवश्यक हैं
ReplyDeleteक्योंकि वेद कहता हैं ---
"पवित्रम् ते विततम् अतप्ततनुर्न न अशनुते"
मैं एक जिज्ञासु हूँ , और आप कृपया मेरा मार्गदर्शन करें कि अगर कोई बालक शूद्र के घर पैदा हो और वो किसी भी वजह से भगवद चिन्तन और मनन से और अपने तप के बल पर ब्रह्म की प्राप्ति कर लेता है , या दूसरी तरफ कोई उच्च वर्ण कोई इंसान विलासिता पूर्ण जीवन जीए , नित्यकर्म से विमुख हो , तो क्या वो फिर भी उस शुद्र वर्ण में जन्मे ब्रह्मज्ञानी से श्रेष्ठ है क्या ?और उस शुद्र ब्रह्मज्ञानी बालक को अछूत ही मन जायेगा ?
Deleteमहाभारत के वन पर्व के आजगर पर्व के 81अध्याय का 20 से23श्लोक तक इसी प्रश्ने का उत्तर है
Deleteजैसे डॉक्टर के घर पैदा होने से कोई डॉक्टर नहीं हो जाता और इंजीनियर के घर पैदा होने से कोई इंजीनियर नहीं बन जाता उसकी पढ़ाई जरूरी है उसका ज्ञान जरूरी है उसका प्रैक्टिकल भी जरूरी है उसी प्रकार ब्राह्मण के घर केवल पैदा हो जाने से कोई ब्राह्मण और क्षत्रिय के केवल पैदा हो जाने से क्षत्रिय नहीं हो जाता उस वर्ण का कर्म करने से वो ब्राह्मण या क्षत्रिय हो सकता है। जिस क्षत्रिय ने कभी तलवार न उठाई हो वो दुश्मनों से कैसे देश या किसी की रक्षा कर सकता है उसी प्रकार जिस ब्राह्मण को वेद और पुराण का ज्ञान न हो वो कैसे किसी को ज्ञान दे सकता है किसी का क्या भला करेगा? पहले ये था कि ब्राह्मण या क्षत्रिय या किसी भी वर्ण का बच्चा वही कार्य करता था जो उसके पूर्वज या माता पिता करते थे इसीलिए वो वर्ण से जाति बन गई वो उसी कार्य में प्रवीण हो गया। लेकिन आज तो ब्राह्मण का लड़का भी इंजीनियरिंग या और क्षेत्रों में चला गया है जो कि और वर्ण वाले लोग वो कार्य करते थे और अपना कर्म भूल गया इसीलिए वो केवल ब्राह्मण के घर पैदा होने से ब्राह्मण नहीं हो सकता या क्षत्रिय के घर पैदा होने से क्षत्रिय नहीं हो सकता। जय श्री राम।
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Delete2001
ReplyDeleteAjay
ReplyDeleteऋग्वेद के अनुसार मनुष्य कर्म से ब्राह्मण होता
ReplyDeleteरही बात मनुस्मृति की तो जो मूल मनुस्मृति है उसमें ऐसा कुछ भेदभाव नही है
लेकिन जब ब्राह्मणवाद का उदय हुआ तब मनुस्मृति में पाली संस्कृति में जो अतिरिक्त श्लोक जोड़े गए वे फर्जी है
आप मूर्खता पूर्ण व्याख्यान देकर क्यों सामाजिक ताने बाने को नष्ट करना चाहते हैं। सिर्फ़ अपनी कुप्सित मानसिकता समाज पर थोपने के प्रयास व्यर्थ है आपका भी दोष नही सदियों यही होता आ रहा है अब कारण सोशल मीडिया पर नही बता सकता हमें अपने कर्तव्य पता हैं। अपने स्वार्थ के लिये मनुस्मृति और वेदो के अर्थ कर लो और कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा जोड़ कर इमारत तैयार कर दो। अरे मनु स्मृति में ही कम्बोज, किरात, शक, चीन, यवन आदि जातियां क्षत्रिय वर्ण से च्युत हो गईं थी क्यों जबकि यह तो बाद में जोड़ा गया था। अब आप या तो यह मानिय के वर्ण कर्म से था जन्म से नही। या फ़िर यह कहिये के वर्ण बांटे जा रहे थे अपने स्वार्थ के लिये।
ReplyDeleteReplies need to be respectful!
Deleteशुद्र्वत हो या शूद्र..... इससे अर्थ कहाँ बदलता है
ReplyDeleteसभी से निवेदन है कि कृपया श्री मद भागवत गीता के चौथे अध्याय के 13 श्लोक को देखें।
ReplyDeleteउसमें भगवान श्रीकृष्ण ने चातुर्य वर्ण व्यवस्था के विषय में सटीक जानकारी दी है।
ठीक
Deleteकहा
स्कंदपुराण में श्लोक कहाॅ है।कौनसे अध्याय में
ReplyDeleteब्रह्म जाने इति ब्राह्मणा:
ReplyDeleteEk dum bekar translation diya hai admin ne! Manusmriti ka konsa shlok hai kis adhya ka wo bhi mentioned nhi kiya!
ReplyDeleteSourav Gupta ka translation ek dum sahi hai.
A person is born as Shudra by birth, he takes second birth when noble sacraments (commencement of study) is performed.
He becomes knowledgable and learned when he has studied Vedas, and he becomes Brahman when he has known the Brahma, the ultimate and the supreme.
एक व्यक्ति जन्म से शूद्र के रूप में पैदा होता है, वह दूसरा जन्म तब लेता है जब अच्छे संस्कार (अध्ययन का प्रारंभ) किया जाता है। जब वह वेदों का अध्ययन कर लेता है तो वह ज्ञानी और विद्वान हो जाता है, और जब वह परम और सर्वोच्च ब्रह्म को जान लेता है तो वह ब्रह्म बन जाता है।
Interpretation of the Shloka by Sourabh Gupta ji correct. Thanks
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