Saturday, 2 September 2017

क्या तथाकथित समाज सुधारकों को आप्त मान सकतें है ?

यथार्थ कथन न होने से ये तथाकथित बुद्धिजीवी समाज सुधारक आप्त कोटी में नहीं आते |

यथार्थ न होना ही असत्य है | 👍
असत्य का वरण भला हम क्यों करें ?

इनके कथन का शास्त्रदृष्टि में परीक्षण करना, तदनु मान्य अमान्य करना ही न्यायोचित है |

अपने को देखो! इन कथित सुधारकों की बात झट मान लेते हो पर शास्त्रवचन में किन्तु परन्तु |  शर्म नहीं आती तुम्हें ?

यही है इनका (पाश्चात्यमुखी अराजक तत्त्व #फूट_डालो_और_राज_करो की कुनीति से सनातन वैदिक धर्म के भोले -भाले लोगों के मनो - मस्तिष्क में इसके गौरवशाली इतिहास को बहुत चालाकी से विकृत करके विष घोलने का कार्य करते हैं ।

           आज विशेष आवश्यकता है कि प्रत्येक हिन्दू अब जागे और अपनी संस्कृति को , अपने गौरव को , अपनी अस्मिता और अपने स्वाभिमान को पहचाने ! )

(कोष्ठकस्थ विषय श्री आदि शंकराचार्य से सादर स्वीकृत है )

जय श्री राम

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