अपना वर्ण न छुपाओ ! जो है उसे वैसे ही स्वीकारो व कहो |
संसार से छुपा सकते हो पर उससे नहीं छुपा सकते जो अदृश्य होकर भी सबको देख रहा है |
तुम जितनी भी छुपाने की कोशिश कर लो पर प्रकृति तुम्हें तुम्हारे वर्ण सदृश कर्म में नियोजित कर ही लेगी |
सनातनधर्म का कोई भी वर्ण हेय नहीं है, अनादरणीय नही है, अयोग्य नहीं है, अनपेक्षित नहीं है , दलित नहीं है|
सभी का स्व स्व स्थान में यथायोग्य महत्त्व है |
अपने को हीन व ज्येष्ठ समझना उचित नहीं |
"मेरे समान वर्ण वाला अन्य वर्णस्थ कोई नहीं है " यह भावना प्रत्येक वर्ण में होना उत्तम है |
सनातन के चारों वर्ण शास्त्ररूप सूत्र में मणियों की तरह पिरोए गए है |
#सूत्रे_मणिगणा_इव
इत्थम् अनादि काल से स्व स्व धर्म का पालन करते हुए प्रीति पूर्वक सभी रहतें है | यही सनातनवैदिकधर्म की महत्ता है |
जय श्री राम
No comments:
Post a Comment