Saturday, 2 September 2017

अभ्युदय व नि:श्रेयस कैसे मिलेगा ?

हम किसी का दूषण नहीं करते | 😊

शास्त्रवचन का अनुवाद मात्र करतें हैं |

👉 यदि आपकी ही विपरीत मति व गति है तो इसमें हम क्या कर सकते हैं ?

वरांगभूत #मुख होने के कारण शास्त्रोक्त प्रवचन का अधिकार वेद स्वयं हमें देता है |

इसीलिए सत् प्रेरक सज्जन कहतें है -

#मुख_नहीं_बोलेगा_तो_कौन_बोलेगा ?

और लोक में भी #शास्त्रपूतं_वदेद्वाणी प्रसिद्ध ही है |

आपके आचरण या मत के विरूद्ध शास्त्रवचन होने से वह अमान्य नहीं हो जाता | कर्तव्य अकर्तव्य में वही प्रमाण रहेगा|

शास्त्रविधि का त्याग जहां होता है व मनमानी रीति में प्रीति जहां होती है वहां  सिद्धि, सुख व परा गति की कल्पना भी नहीं कर सकते|

सार यह है कि शास्त्रविधि में मति,रति गति करिए | इसी से अभ्युदय व नि:श्रेयस की प्राप्ति होनी है | अन्यथा नहीं |

जय श्री राम

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