#जिज्ञासा - पूज क्यों करनी चाहिए ? और कैसे करनी चाहिए ?
#समाधान - पहले तो यह समझो! कि #पूज है क्या ? पूज़ का अर्थ है जीर्णोद्धार किए गए मन्दिर की अथवा अन्य विग्रहखण्डनादि दोषों में, अथवा नियतकाल में शास्त्रानुसार , देवाज्ञा अनुसार, परम्परानुगुण व शिष्टाचारानुसार यथाविधि पुन: प्रतिष्ठा करना |
यह मुख्यत: दो प्रकार की है - 1. बडी पूज़, 2. छोटी पूज़ |
यह जगत् की सुख, शान्ति व समृद्धि के लिए की जाती है |
👉 किसी भी कार्य को करने के लिए वेदाचार, परम्परा, शिष्टाचार आदि प्रमाण होतें है | 👍
साथ ही साथ इस पूज को करने में #देव व #परम्परा का मुख्य स्थान होता है | पूज का जो विधान देव व परम्परा करती है उसी विधान से करना चाहिए | मनमुखी विधि से नहीं करना चाहिए |
बडी अथवा छोटी जो भी पूज करनी है तो देव तथा परम्परा क्या कहती पहले यह देखना चाहिए फिर कुलपुरोहित से सविनय प्रार्थना करके उसका विधान व मुहूर्त का ज्ञान करना चाहिए |
जैसा देव ब्राह्मण आदेश करे शेष प्रजा को ठीक वैसा ही आचरण करना चाहिए | इनके निरादर से पूज ही निष्फल हो जाऐगी |
अत: बडी पूज यदि 3 महीने होनी है तो होनी है इसमें देव व ब्राह्मणों का एकमत है | इसे तुम्हारी ईच्छा वा हठ से संकुचित नहीं किया जा सकता | इससे सर्वनाश सिद्ध है |
तुममें योग्यता नहीं तो न करो ! यज्ञ शौक के लिए नहीं होता |
दूसरे मार्ग में चलो जो कि सुगम व अल्प दिवस साध्य है |
देव, ब्राह्मण व परम्परा के विरुद्ध चलोगे तो तुम्हारा सर्वनाश निश्चित है |
भगवान् चन्द्रमौलीश्वर सबको सद्बुद्धि प्रदान करें ! 🙏
हर हर महादेव
जय श्री राम
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