*#प्रश्नावली_16_का_उत्तर*
मरणाशौच मुख्य रूपसे मृत्यु के तुरन्त बाद ही शुरू हो जाता है।
*#प्रमाण* -
*#मरणादेव_कर्तव्यं संयोगो यस्य नाग्निना ।*
*दाहादूर्ध्वमशौचं स्याद् यस्य वैतानिको विधि।।* (शातातप)
समस्त हिंदू समाजमें आशौचकी प्रवृत्ति मृत्युके बाद ही होनी चाहिए ।
परंतु जो द्विज #अग्निहोत्री हैं उनके आशौचकी प्रवृत्ति दाह के बादसे करनी चाहिए।
विद्वद्वरवरिष्ठ परम पूज्य गुरुदेव श्रीनर्मदेश्वर द्विवेदीजी के कथनानुसार -
धर्मसम्राट स्वामी श्रीकरपात्रीजी महाराजने उस समय अग्निहोत्रियों की गणना पूरे भारतवर्ष में करवाई थी।
तो उस समय केवल 130 के लगभग अग्निहोत्री पूरे भारतवर्ष में थे, जिसमें से ज्यादातर दक्षिण के ही थे ।
तव स्वामीजी ने कुछ विद्वानोंको अग्निहोत्रकी दीक्षा दिलवाई थी और उनकी व्यवस्था भी की थी ।
तब से अब तक और ह्रास हो गया , दुर्भाग्यवश बहुत ही अल्प मात्रा में अग्निहोत्री भारतवर्ष में बचे हुए हैं ।
*#सारांश* -
तो केवल उन अग्निहोत्रिओं को छोड़करके , बाकी के हम सभी जो निरग्निक हैं अर्थात् अग्निहोत्री नहीं हैं,उन सभी को मरणाशौच मृत्युके तुरंत बाद शुरू हो जाता है ।
बहुत से पांडित्य करने वाले पंडितोंको भी यह भ्रम है कि मरणाशौच शवदाह के बाद लगता है।
*#हमारा_उद्देश्य* -
सभीसे करबद्ध प्रार्थना है कि - भ्रमनिवारण पूर्वक शास्त्रीय मार्गका ही सहर्षावलंबन करें।
नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव।
राजेश राजौरिया वैदिक वृन्दावन।
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