#प्रश्नोत्तर
"सादर प्रणाम"
कुछ प्रश्नों के उत्तर देने की कृपा करें।
१-पिता के जीवित होते बेटा किन्हें किन्हें तर्पण कर सकता है?
२-मामा की पुत्री से विवाह अगर सम्मत है तो किन बातों का ध्यान रखना उचित है।
३-ऋतु स्नान के बाद स्त्री जिसे प्रथम बार देखती है वैसी छाप आने वाली सन्तान पर पड़ती है तो प्रश्न यह कि कौन सा ऋतु स्नान सर्व प्रथम वाला या गर्भाधान के पहले वाला स्नान?
४-श्रीगणपति जी पर अगर भूल वश तुलसी चढ़ जाती है तो इसके लिये क्या प्रायश्चित है?
५-पूजन में देवताओ को चंदन आदि लगाते समय किस प्रकार की मर्यादा है? ...यथा चरणों मे या पादुका में चंदन लगा कर मस्तक में लगाने में किसी प्रकार का निषेध आदि?
जयश्रीराम
#उत्तर -
1 जिसके पिता जीवित हों वे भी नित्य तर्पण कर सकते हैं, परंतु दिव्य पितरों तक ही, आगे अपने पितरोंका /मनुष्य पितरों का तर्पणादि न करें ।
और जिसके पिता जीवित हो वह पूर्ण अपसभ्य भी ना हो
#प्राचीनावीतीत्वाप्रकोष्ठठात्।
प्रकोष्ठ तक ही अपसव्य अवस्था में जनेऊधारण करें।
2 हमारे यहां वेदकी 1131 शाखाएं हैं उनके अनुसार पद्धतियां और विधान भी पृथक पृथक उपलब्ध होते हैं।
जिन विधानोंमें आपस में विरोध नहीं है और किसी शाखा में उसका उल्लेखभी नहीं है ,तो उस कार्य को दूसरी शाखा वाले के अनुसार भी दूसरी शाखा वाला कर सकता है।
परंतु किसी शाखा में किसी भी विधान पद्धति को अलग प्रकार से कहा गया है और दूसरी में अलग प्रकार से कहा गया है, तो उन दोनों का आपस में मेल नहीं हो सकता अर्थात दोनों को अपनी अपनी शाखा अनुसार ही बर्ताव करना चाहिए यही सभी शास्त्रों का निर्णय है ।
#पारक्यमविरोधीचेत्।
इसी नियमानुसार कुछ ऋग्वेद की और कुछ कृष्ण यजुर्वेदादिकी शाखा वालों ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्यों के लिए मामा की बेटी से विवाह करना शास्त्र ने वैध बताया है अर्थात विधान किया है, जिनके लिए विधान किया है अर्थात जिनके यहां वंश परंपरा से यह कार्य चलता आ रहा है उनके लिए यह धर्म एवं शास्त्र सम्मत है ऐसा दक्षिण के कई पवित्र ब्राह्मणों के यहां भी देखा सुना जाता है।
परंतु जिन शाखा वालों के यहां, जिस देश में अथवा जिन कुलों में परंपरा से यह प्राप्त नहीं है जिनके यहां यह काम नहीं होता बल्कि निंदित माना जाता है उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए ।
ऐसा निर्णय निर्णयसिंधुमें लिखा हुआ है विस्तार से आप वहां देख सकते हैं।
3 हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार तो प्रथम रजोदर्शन भी पति के घर पर ही होना चाहिए (आज की परिस्थिति अलग है) हर एक रजोदर्शन के बाद शुद्धि के उपरांत सर्वप्रथम अपने पति का ही मुख देखा जाए ऐसा माताओं के लिए शास्त्र में स्पष्ट उल्लेख है ।
इस बात को यूं समझ सकते हैं कि दिन में या संध्याकालमें गर्भाधान करने से संतान क्रूर होती है ,ऐसा कहा गया है।
तो क्या गर्भाधान न करने की दृष्टि से दिन में मैथन किया जा सकता है?
इसका उत्तर देते हुए टीका कारों ने लिखा है कि नहीं । तब भी निषिद्ध है , अगर उससे पुत्र नहीं हुआ तब भी अगले पुत्र में वह दोष आएगा, अगले जन्म में जाएगा , उसका तो वह दोषी होगा ही।
ठीक इसी प्रकार सभी रजोदर्शन ओं में नियम पालन करना जरूरी है ।
परंतु गर्भाधान से पूर्व में विशेष ध्यान रखा जाए ऐसा तात्पर्य शास्त्र कारों ने दर्शाया है ।
4 कई ऐसे अपराध हैं जिनका प्रायश्चित स्पष्ट रूप से शास्त्रों में नहीं लिखा है।
उनके लिए शास्त्रों ने एक नियम बनाया है ,एक निर्देश किया है कि जिन का प्रायश्चित नहीं लिखा है
उनका प्रायश्चित प्राणायाम है
देवता का स्मरण है
क्षमा याचना है
और भगवन्नाम है।
इसलिए अपनी शक्ति अनुसार प्राणायाम करें
गणेश जी से क्षमा याचना करें ।
और अपने इष्टदेव का नाम संकीर्तन करें।
तो कई प्रकार के दोषों का प्रायश्चित हो जाता है यहां भी यही कार्य करना चाहिए।
5 मुख्य रूप से साधारण पूजन में देवताओं के इष्ट देवों के मस्तक पर ही तिलक लगाने का विधान है, तो वहां कोई आपत्ति ही नहीं है।
परंतु विशेष पूजनमें चरणों का भी पूजन होता है, चरण पादुका ओं का भी होता है और देवता का तो होता ही है ।
तो ऐसी जगहों पर अलग-अलग पात्रों में चंदन रखना चाहिए
यह तंत्र शास्त्रों में विशेष पूजन की विधि में आप देखेंगे तो वहां पाद्यके लिए पात्र अलग रखा जाता है, अर्घ्य के लिए अलग रखा जाता है।
पूरी पात्रासाधन की प्रक्रिया बड़ी जटिल और कठिन है सादा रूप से किसी पंडित के भी बस की बात नहीं है बिना योग्य गुरु से पढ़े और उसका अभ्यास किए बिना ।
तो कहने का तात्पर्य यही है कि जहां चरणों का और देवता का पूजन दोनों का करना हो तो अलग-अलग पात्रों में चंदन रखें और अलग-अलग रूप से निवेदन करें ।
बीच-बीच में हाथ धुलने की परंपरा भी पूजन क्रम में ध्यान रखने योग्य है।
पूजन की पद्धति तो विशेष है बहुत विधि निषेध हैं तंत्र शास्त्रों में आगम शास्त्रों में अवश्य देखनी चाहिए।
वर्तमान में जो भी पूजन क्रम चल रहा है इसका मूल तंत्र ही हैं।
राजेश राजौरिया वैदिक वृन्दावन।
नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव।