Sunday, 3 November 2019

अपनी शाखा के अनुसार कर्म न करे तो क्या फल है?

स्वामिनारायण सामवेदी ब्राह्मण थे, जब से वे छप्पैया छोड गुजरात में रहने लगे तब गुजरात अन्तर्गत  उमरेठ गाँव के ऋग्वेदीशाकल शाखा वाले ब्राह्मणो से अद्यावधि  स्वामिनारायण के भतीजे के वंशज की पिढीयाँ जनेऊ तक तथा आमरणांत सभी संस्कार ऋग्वेद की शाकलशाखा में ही करते आए हैं .. इस तरह उनके  अद्यावधि सभी मूल गादी के धर्माचार्य परशाखाश्रयण के कारण द्विजत्वरहित शाखारण्डदोष वाले व्रात्य हैं ।

अपनी ही शिक्षापत्री में घनश्याम पाण्डे ने शास्त्रवचन लिखकर वदतोव्याघात कर दीया और परशाखाश्रय के कारण पतित हुए ।।

स्ववेदशाखा रहित जनेऊ-संस्कार और परशाखा का प्रथम-अध्ययन व्यर्थ हैं... चाहे वह सज्जन भी क्यूँ न हो द्विजधर्मों के अधिकारों से परिष्कृत हैं --> " (यः स्वशाखां परित्यज्य परशाखां समाश्रयेत् । स शूद्रवद् बहिष्कार्यः सर्वकर्मसु *साधुभिः।।* वसिष्ठ।।)"

परशाखाश्रयों कि गति देखिये --> (उच्छेता तस्य वंशस्य रौरवं नरकं व्रजेत् ||वीरमित्रोदय।।)

यथा परशाखीय जिस शिष्य का जनेऊ हुआ हैं वह शिष्य द्विजत्व को प्राप्त नहीं हुआ यत्र-तत्र शास्त्रों ने ड़िंडिमघोष करके कहा हैं--> #स्वसूत्रोक्तविधानेन_सन्ध्यावन्दनमाचरेत्। #अन्यथा_यस्तु_कुरुते_आसुरीं_तनुमाप्नुयात्।। विश्वामित्र संहिता।।
#सन्ध्यातिक्रमणं_यस्य_सप्तरात्रमपिच्युतम्। #उन्माददोषयुक्तोपि_पुनः_संस्कार_मर्हति।।शौनकः।।

"(यच्छाखीयैस्तु संस्कारैः संस्कृतो ब्राह्मणो भवेत्।। तच्छाखाध्ययनं कार्यमन्यथा पतितो भवेत्।। वसिष्ठ।।" ///यो न मन्त्रैः स्वशाखोक्तैः संस्कृतोनाधिकारिणा नासौ द्विजत्वमाप्नोति पुनःसंस्करणं विना।। ज्योतिर्निबंध।। //// अक्रिया त्रिविधा प्रोक्ता विद्वद्भिः कर्मकारिणाम्। अक्रिया च परोक्ता च तृतीया चायथाक्रिया ।। छांदोग्य परिशिष्ट कात्यायन।।)"

इस प्रकार से घनश्याम पाण्डे
सभी वैदिकधर्मकर्म से विगर्हित हैं और इनकी अद्यावधि भतीजो की कुलपरम्परा भी -- "(स्वीया शाखोज्झिता येन ब्रह्मतेजोऽर्थिना परम्। #ब्रह्महैव स विज्ञेयः सर्वकर्मसु #गर्हितः।।वसिष्ठ।।)"

जय श्री राम

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