Sunday, 3 November 2019

रामशर्मा और दयानन्द के स्त्रीयों को जनेऊ डालने के पक्ष का खण्डन

श्री  राम  शर्मा  और  स्वामी  दयानंद  के   मत  की  समीक्षा  -

श्री  राम  शर्मा  आचार्य   (शान्ति कुञ्ज वाले )  स्त्रियों  के  वेदाध्ययन  , यज्ञोपवीत  संस्कार  जैसे  नवीन  सिद्धांत  ख्यापित  करते   हैं    और    स्वामी दयानन्द तो  इस  विषय  में   सबसे  आगे  हैं जो    #इमं_मन्त्रं_पत्नी_पठेत्  -  इस शतपथब्राह्मणवचन से   स्त्री के वेदाध्ययन  की पुष्टि भी  कर  चुके   है , जबकि  इनका  मत   अयुक्त   है,     क्योंकि  ये  यह वचन   वेदाध्ययन  का विधिवाक्य नहीं है , वेदाध्ययन का विधिवाक्य है - स्वाध्यायोऽध्येतव्यः (तै० आ० २|१५ )  अपितु  वेदाध्ययानानन्तर   कर्मानुष्ठान  के अन्तर्गत  इसका अन्तर्भाव है |  स्त्रियों  हेतु  विवाह  ही  उनकी   उपनयन  विधि     है ,  पतिसेवा  ही  गुरुवास  है ,इत्यादि    जैसा  कि  -

#वैवाहिको_विधिः_स्त्रीणां_संस्कारो_वैदिकः_स्मृतः |
#पतिसेवा_गुरौ_वासो_गृहार्थोँऽग्निपरिक्रिया || (मनुस्मृति २|६७)

पति के  साथ स्त्री का कर्म में अधिकार होता है -  ये शास्त्र का सिद्धान्त है  |     आधानवाक्य  (  वसन्ते ब्राह्मणोs ग्रीनादधीत ,  ग्रीष्मे राजन्यो ,  वर्षासु वैश्यः  | (शतपथ ब्राह्मण २|१|३|५ ) में   पुंस्त्व का ही ग्रहण होने से   अध्ययनके उपरान्त उन्हीं का  उपनयन विधान शास्त्र से विहित हुआ है | ये  विषय  भी  कात्यायन  श्रौतसूत्र  के  परिभाषा  प्रकरण  में  स्पष्ट  हुआ  है    

मेखलया यजमानं दीक्षयति योक्त्रेण पत्नीम् (तै० सं० ६|१|३ ) ,  आज्यमुद्वास्य पत्नीमवेक्षयति (का० श्रौ० २|७|४)   इत्यादि वाक्यों से    स्त्री का भी   यज्ञादि कर्म में अधिकार विवक्षित हुआ  है   किन्तु   भर्त्ता के साथ ही उसका अधिकार होता है ,  स्वतन्त्र नहीं  ,  जैसा कि शास्त्र ने कहा  है -

#नास्ति_स्त्रीणां_पृथग्यज्ञो_न_व्रतं_नाप्युपोषणम् |
#शुश्रूषयति_भर्त्तारं_तेन_स्वर्गे_महीयते  ||  (मनु ० ५|५५)

अधिक जानकारी हेतु  स्ववतोस्तु वचनादैककर्म्यं स्यात् जै० मी० ६|१|१७इत्यादि पूर्वक  पूर्व मीमांसा के   दंपत्तिसहाधिकार अधिकरण   को    पढ़ना  चाहिए  ,  जहां   ये विषय विस्तार से सुस्पष्ट किया गया है |

||  जय श्री राम ||

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