श्री राम शर्मा और स्वामी दयानंद के मत की समीक्षा -
श्री राम शर्मा आचार्य (शान्ति कुञ्ज वाले ) स्त्रियों के वेदाध्ययन , यज्ञोपवीत संस्कार जैसे नवीन सिद्धांत ख्यापित करते हैं और स्वामी दयानन्द तो इस विषय में सबसे आगे हैं जो #इमं_मन्त्रं_पत्नी_पठेत् - इस शतपथब्राह्मणवचन से स्त्री के वेदाध्ययन की पुष्टि भी कर चुके है , जबकि इनका मत अयुक्त है, क्योंकि ये यह वचन वेदाध्ययन का विधिवाक्य नहीं है , वेदाध्ययन का विधिवाक्य है - स्वाध्यायोऽध्येतव्यः (तै० आ० २|१५ ) अपितु वेदाध्ययानानन्तर कर्मानुष्ठान के अन्तर्गत इसका अन्तर्भाव है | स्त्रियों हेतु विवाह ही उनकी उपनयन विधि है , पतिसेवा ही गुरुवास है ,इत्यादि जैसा कि -
#वैवाहिको_विधिः_स्त्रीणां_संस्कारो_वैदिकः_स्मृतः |
#पतिसेवा_गुरौ_वासो_गृहार्थोँऽग्निपरिक्रिया || (मनुस्मृति २|६७)
पति के साथ स्त्री का कर्म में अधिकार होता है - ये शास्त्र का सिद्धान्त है | आधानवाक्य ( वसन्ते ब्राह्मणोs ग्रीनादधीत , ग्रीष्मे राजन्यो , वर्षासु वैश्यः | (शतपथ ब्राह्मण २|१|३|५ ) में पुंस्त्व का ही ग्रहण होने से अध्ययनके उपरान्त उन्हीं का उपनयन विधान शास्त्र से विहित हुआ है | ये विषय भी कात्यायन श्रौतसूत्र के परिभाषा प्रकरण में स्पष्ट हुआ है
मेखलया यजमानं दीक्षयति योक्त्रेण पत्नीम् (तै० सं० ६|१|३ ) , आज्यमुद्वास्य पत्नीमवेक्षयति (का० श्रौ० २|७|४) इत्यादि वाक्यों से स्त्री का भी यज्ञादि कर्म में अधिकार विवक्षित हुआ है किन्तु भर्त्ता के साथ ही उसका अधिकार होता है , स्वतन्त्र नहीं , जैसा कि शास्त्र ने कहा है -
#नास्ति_स्त्रीणां_पृथग्यज्ञो_न_व्रतं_नाप्युपोषणम् |
#शुश्रूषयति_भर्त्तारं_तेन_स्वर्गे_महीयते || (मनु ० ५|५५)
अधिक जानकारी हेतु स्ववतोस्तु वचनादैककर्म्यं स्यात् जै० मी० ६|१|१७इत्यादि पूर्वक पूर्व मीमांसा के दंपत्तिसहाधिकार अधिकरण को पढ़ना चाहिए , जहां ये विषय विस्तार से सुस्पष्ट किया गया है |
|| जय श्री राम ||
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