Tuesday, 17 September 2019

सर्वरोग हरने का मन्त्र

सर्वरोगहर अच्युतानंदगोविंदनामजप विधिः। संकल्प - विष्णवे नमः विष्णवे नमः विष्णवे नमः  (अपने स्वयं के लिए "मम" अथवा जिसके लिए जप करना हो उसके नाम के पीछे --- पुरुष हो तो "रुग्णस्य", स्त्री हो तो "रुग्णायाः" पढे) इह जन्मजन्मांतरीय शरीरवाङ्गमनः संभूतनानाविध दुरितोदर्क कर्मविपाक-निदानभूत वातपित्तकफादि , अन्यतमप्रकोपजन्य व्याध्युपशमपूर्वं जीवच्छरीर अविरोधेन सद्यः शरीरे आरोग्यावाप्त्यर्थं समस्त दुस्तर व्याधि संघध्वंसक्षमस्य अच्युतानंतगोविंद इति श्री मद्भगवतोनामत्रयस्य अद्यप्रभृति (जप ब्राह्मण द्वारा करवाना हो तो "ब्राह्मणद्वारा" स्वयं करना चाहे तो "अहं" पढे) लक्षाऽयुताष्टाधिकसहस्र = ११८००० संख्याकजपाख्यं कर्म करिष्ये। गणेशं अभ्यर्च्य [(अपनी सामर्थ्यतानुसार गणपतिजी का पूजन करे, ब्राह्मण द्वारा जप करवाना हो तो ब्राह्मण का वरण और पूजन करे-- जिस ब्राह्मण की वरण(नियुक्ति) की जाय वही ब्राह्मण जप पूर्ण होनेतक जप करे उसके बदले में अन्य नहीं -- सविशेष यदि यजमान अथवा ब्राह्मण के घर जननमरण-सूतक आजावें तो अनुष्ठान विराम नहीं होगा न ब्राह्मण व यजमान को सूतक लगेगा , यदि यजमान वा ब्राह्मण अपने सूतकीगृह का पका अन्न खाएगा तो सूतक लगेगा, जिस यजमान ने संकल्प किया हो उसकी पत्नी किसी सूतकी के स्पर्श किए हुए अन्नादि से भोजनपचनक्रिया न करे ऐसा करने से सूतक लगेगा अतः अनुष्ठान के प्रारम्भपूर्व ही अपनी भोजन की व्यवस्था निश्चित्त कर ले। यदि यजमान अनुपवीत हो, वैश्य हो ,व्रात्य हो , पतित हो तो उसके घर ब्राह्मण भोजन न करे केवल प्राकृत्तिक फल,गाय ,महिषी का परिक्षण किया हुआ दूध व इसकी सामग्री जिसमें कुछ अन्नादिमिश्र न हुआ हो वे ले सकते हैं - दूध,दही,छाछ,घृत,फल,मठा, कन्द(सूरण) , आदि ले परंतु मुन्यन्न(राजगरा) न ले )]

जप विनियोग - अस्य श्री नामत्रयीमहामंत्रस्य कश्यपात्रिभरद्वाजाऋषयः श्री महाविष्णुर्देवता अनुष्टुप् छंदः सांकल्पिकहेतु सिद्ध्यर्थे न्यासे विनियोगः -
कश्यपात्रिभरद्वाजर्षये नमः शिरसि। अनुष्टुप् छंदसे नमो मुखे। श्री महाविष्णुर्देवतायै नमः हृदये। श्री महाविष्णुप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः --->
अच्युताय अंगुष्ठाभ्यां नमः
अनंताय तर्जनीभ्यां नम:

No comments:

Post a Comment

पूजा आदि में सिर नहीं ढंका चाहिए

शास्त्र प्रमाण:- उष्णीषो कञ्चुकी चात्र मुक्तकेशी गलावृतः ।  प्रलपन् कम्पनश्चैव तत्कृतो निष्फलो जपः ॥ अर्थात् - पगड़ी पहनकर, कुर्ता पहनकर, नग...