सनातन-वैदिक-मान्यता-सिद्धान्त-सङ्ग्रह
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इन सनातन वैदिक सिद्धान्ताें मैं सभी सनातन वैदिक (हिन्दु) ओं काे सहमत हाेकर आगे बढना उचित दीखता है---
१. चार वेद ऋक्, यजु, साम, अथर्व की (शुक्ल कृष्ण दाेनाें प्रकार के यजुर्वेदाें की शाखासहित) सभी शाखाएँ अपाैरूषेय वेद हैं ।
२. एेतरेय, शतपथ, तैत्तिरीय, पञ्चविंश इत्यादि ब्राह्मणग्रन्थ भी अपाैरूषेय वेद हैं ।
३. वेदाें का परम प्रामाण्य है ।
४. जन्मना जाति और संस्कार तथा अाचार से जातित्व की पूर्णता मान्य है । जन्मना जाति व्यवस्था पुनर्जन्म के सिद्धान्त अनुरूप न्यायपूर्ण है ।
५. चार वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) ।
६. चार आश्रम (ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ, सन्न्यास) ।
७. गृहस्थ-आश्रम की श्रेष्ठता और गुरुत्व तथा आचार्यत्व (गृहस्थ ब्राह्मण ही गुरु और आचार्य बन सकते हैं) ।
८. शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छन्दःशास्त्र, वेदाङ्गज्याेतिष-- इन छः वेदाङ्ग तथा मीमांसाशास्त्र के अनुसार का वेदार्थ ही सही है और उसके अनुसार आचार का ग्रहण करना चाहिए।
९. स्कन्दस्वामी, उद्गीथ, वेङ्कटमाधव, उवट, भट्टभास्कर, सायण, महीधर, मुद्गल आदि प्राचीन विद्वानाें से रचित वेदव्याख्याएँ प्रामाणिक हैं, ग्राह्य हैं । (वेदभगवान् के कथन-विधान के उपर अपनी स्वल्पबुद्धि से हिंसा-अहिंसा, अश्लील-अनश्लील, उचित-अनुचित इत्यादि समीक्षा करना अनुचित है)
१०. वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति--- सिद्धान्त । (वैदिक पशुबन्ध-साेमयागादि की --अग्नीषाेमीयं पशुमालभेत-- इत्यादि विधि से विहित पशुहिंसा अहिंसा ही है, तस्माद् यज्ञे वधाेऽवधः--- सिद्धान्त) ।
११. स्वशाखा-वेद का शास्त्रीय रूप में अदृष्टाेत्पादन के लिए अध्यापन का अधिकार गृहस्थ ब्राह्मण का है । अदृष्टफल के लिए अध्ययन का अधिकार भी ब्राह्मण का है । ब्रह्मचारी, गृहस्थ तथा वानप्रस्थ भी गुरु से वेद पढ सकते हैं । अन्य लाेग वेदाेक्त ज्ञान ब्राह्मणाें से प्राप्त कर सकते हेैं ।
१२. वेदाध्यायी शुद्ध ब्राह्मणाें काे दान देना बडा पुण्याेत्पादक कार्य है ।
१३. धर्मसूत्रविहित आचार अत्यन्त मान्य है ।
१४. स्मृतियाें की मान्यता है ।
१५. स्त्रीका पुनर्विवाह धर्म में अमान्य है ।
१६. स्व-शाखा श्राैतसूत्र-गृह्यसूत्र अनुसार कर्मकाण्डका अनुष्ठान करना चाहिए।
१७. श्राद्ध-कर्म-विषयक वैदिक मन्त्राें की गृह्यसूत्राेक्त व्याख्या तथा विनियाेग अत्यन्त प्रमाण हैं ।
१८. कान्यकुब्ज, सारस्वत इत्यादि ब्राह्मणाें का राेटी-बेटी का नियम शास्त्रानुकूल है ।
१९. सभी गृह्यसूत्राेक्त कर्मकाण्डपद्धतियाँ परम प्रमाण हैं (स्वशाखा का गृह्यसूत्र वेदतुल्य है) ।
२०. पुराण तथा इतिहास से वेदाें का उपबृंहण हाेता है । वेद, पुराण तथा इतिहास की कथाओं का तात्पर्य का ज्ञान करने का प्रयास करना चाहिए। सभी कथाओं का हितकारी अर्थ ग्रहण करना चाहिए । वेद, पुराण, इतिहास की कथाओं काे समस्या के रूप में नहीं देखना चाहिए ।
२१. वेदाध्ययनाधिकारहीन सनातनियाें के लिए पुराण (१८ पुराण) तथा इतिहास (रामायण-महाभारत) के अध्ययन की व्यवस्था है ।
२२. अधिकारिविशेष के लिए मूर्तिपूजा की ग्राह्यता है। मूर्तिपूजा से आत्मज्ञान की ओर आगे बढना चाहिए ।
२३. अधिकारिविशेष के लिए भक्तिमार्ग की ग्राह्यता है। ज्ञानमार्ग तथा कर्ममार्ग की ओर आगे बढना चाहिए ।
२४. कर्मानुसार पुनर्जन्म तथा माेक्षमार्गगमन शास्त्रानुसार मान्य है ।
२५. आत्मज्ञान से मुक्ति मान्य है ।
२६. अद्वैत-सिद्धान्त मान्य है ।
२७. वैदिक यज्ञाें की आत्मज्ञानाेपकारकता है ।
२८. ज्ञान- कर्म-समुच्चय (केवल ज्ञान अथवा केवल कर्म ही ग्राह्य नहीं, दाेनाें का अवलम्बन करने का) मार्ग श्रेष्ठ है ।
---- इत्यादि ।
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