Friday, 24 May 2019

माता पिता और सन्यास

माता- पिता  और संन्यास -------

गुरु से आज्ञा  पाकर ही  आश्रम के भीतर या  बाहर आना- जाना  चाहिये , ये धर्ममर्यादा है ।

ब्रह्मचर्य और गृहस्थ : ये दोनों #आश्रम हैं ,  यहॉ  माता- पिता ही  ब्राह्मण के   गुरुदेव हैं ।  शास्त्रों ने  इन्हें गुरु कहा है ,  धर्मज्ञ महाराज  मनु ने  इन्हें  साक्षात् अग्नि कहा है तथा  वेदों ने   स्पष्ट   ' देवता' ही   बताया  है ।
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जो   ब्राह्मण अपने   गुरु  की   आज्ञा   की अवमानना करके , उनको क्षुब्ध करके    इन दो  आश्रमों  से दूसरे (संन्यास)  आश्रम में  जाता है,  वे पाप का भागी होता है,  उसका #संन्यास कभी सफल नहीं होता ।
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यदहरेव विरजेत् ० इत्यादि वचनों का अनर्थ करके कुछ लोग ये  अभिप्राय करते हैं कि  वैराग्य होने पर   घर में झगड़ा -फसाद, छल- प्रपंच करके भी अपने कल्याण के लिये   घर से   संन्यास में जाओ , ये सरासर अनुचित है ।

  शास्त्रीय मर्यादा का अतिक्रमण करके   कभी भी आत्मकल्याण नहीं हो सकता ।

आज देश में   यत्र तत्र   उक्त मर्यादा का उलङ्घन करके ही  तथाकथित  नामधारी   संन्यासी  बने  दिखाई देते  हैं ,  उनका  तो  एक ही  सत्य  है -  वस्तुतः वे न घर के रहे हैं ,   न घाट के ।।

।। जय श्री राम ।।

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