धर्म ज्ञान की विधि -
वेद धर्म का मूल है , ये धर्म का मूल ( वेद) पुस्तक में नहीं है , शब्दजाल से भी अवगम्य नहीं है, आचार्य के आशीर्वाद में है । आचार्यवान् ही वेद को जानता है , आचार्यविमुख वेद को देखता हुआ भी नहीं देखता , सुनता हुआ भी नहीं सुनता । वेद का रहस्य परमाकाश में है, उसका साक्षात् न हो पाया तो लिपि -ध्वनि स्वरूपा ऋचा से क्या करेगा ?
अतः पहले आचार्य की उपासना करना सीखिये ।
गीता पढ़ते होंगे , देखो क्या कहती हैं गीता जी -
#त्वत्प्रसादान्मयाच्युत 🙏 , #व्यासप्रसादाच्छ्रुतवान् 🙏
आचार्य के प्रसाद से शोक मोह नष्ट हुआ , आचार्य के प्रसाद से गुह्य ज्ञान गोचर हुआ ।
एक दूसरी बात -
केवल विनम्रता ही नहीं , निश्छलता भी अत्यावश्यक होती है । भगवती शारदा कुटिल को नहीं दर्शन होतीं । कर्ण आचार्य परशुराम को बहला -फुसला करके धनुर्वेद का रहस्य ले जाने आया , पर भगवती नियति ने उसके इस विद्याग्रहण को ही उसके पतन का कारण बना दिया । अशुभ मार्ग से शुभ नहीं प्राप्त होता ।
।। जय श्री राम ।।
No comments:
Post a Comment