Monday, 27 May 2019

धर्म ज्ञान की विधि

धर्म ज्ञान की विधि -

वेद धर्म का मूल है , ये धर्म का मूल ( वेद)  पुस्तक में नहीं है , शब्दजाल से भी अवगम्य नहीं है,  आचार्य के आशीर्वाद  में है । आचार्यवान् ही वेद को जानता है ,   आचार्यविमुख  वेद को देखता हुआ भी नहीं देखता , सुनता हुआ भी नहीं सुनता ।  वेद का रहस्य   परमाकाश में है, उसका साक्षात् न हो पाया तो  लिपि -ध्वनि स्वरूपा ऋचा से क्या करेगा ?

अतः  पहले आचार्य की उपासना करना सीखिये ।

गीता पढ़ते होंगे , देखो क्या कहती हैं गीता जी - 

#त्वत्प्रसादान्मयाच्युत 🙏 , #व्यासप्रसादाच्छ्रुतवान्  🙏

आचार्य के प्रसाद से  शोक मोह नष्ट हुआ , आचार्य के प्रसाद से गुह्य ज्ञान  गोचर हुआ ।

एक दूसरी बात -

केवल विनम्रता ही नहीं , निश्छलता भी अत्यावश्यक होती है । भगवती शारदा कुटिल को नहीं  दर्शन होतीं । कर्ण  आचार्य परशुराम  को बहला -फुसला करके धनुर्वेद का रहस्य ले जाने आया ,  पर  भगवती नियति  ने  उसके इस विद्याग्रहण को ही उसके  पतन  का कारण बना दिया ।  अशुभ मार्ग से  शुभ नहीं प्राप्त  होता ।

।। जय श्री  राम ।।

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