विदेशी धरती की अपवित्रता ------
जैसे रजस्वला स्त्री देखने में सामान्य स्त्री ही लगती है , वैसे ही समुद्र पार की विदेशी भूमि भी देखने पर भारत भूमि जैसी ही लगती है ।
किन्तु क्या रजस्वला के हाथ का बना भोजन खाने वाला धार्मिक रूप में पवित्र होगा कि अपवित्र ?
जैसे रजस्वला स्त्री से अपवित्र रक्त निःसृत होता है , वैसे ही विदेशी धरती का अन्न जल आदि म्लेच्छ का ही सृजन करती है , वह धरती म्लेच्छों की ही वास स्थान है , म्लेच्छता से ही पर्यवसित होती है ।
जैसे श्मशान घाट की धरती देखने पर मन्दिर परिसर की धरती जैसी ही लगती है , वैसे ही समुद्र पार की विदेशी भूमि भी देखने पर सामान्य भूमि ही लगती है ।
किन्तु श्मशान घाट में मांगलिक अनुष्ठान करने वाला धर्म का विद्वान् होगा कि धर्म का मूर्ख ?
स्थूल नेत्रों से देखने पर तो गंगा और कर्मनाशा दोनो नदियॉ जल की धारा ही दिखती हैं , माता और अपनी पत्नी का शरीर रक्त मांस का पिण्ड ही दीखता है , परन्तु क्या दोनों समान रूप से भोग्य होते हैं ?
ऐसे ही विदेश की धरती में जाने वाला, वहॉ रहकर अन्न जल ग्रहण करने वाला प्रत्येक कुलीन घनघोर अशुद्ध एवं अपवित्र ही होता है ।
।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।
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