Thursday, 30 May 2019

विदेशी धरती की अपवित्रता

विदेशी धरती   की अपवित्रता ------

जैसे रजस्वला स्त्री देखने में    सामान्य  स्त्री ही लगती है , वैसे ही समुद्र पार की विदेशी भूमि भी देखने पर  भारत  भूमि जैसी ही लगती है ।

किन्तु   क्या  रजस्वला के हाथ  का  बना भोजन खाने वाला   धार्मिक रूप में पवित्र होगा कि अपवित्र ?

जैसे रजस्वला स्त्री  से अपवित्र  रक्त निःसृत होता है , वैसे ही विदेशी धरती   का  अन्न जल  आदि    म्लेच्छ का  ही सृजन करती है  ,   वह धरती म्लेच्छों की ही वास स्थान है , म्लेच्छता  से  ही   पर्यवसित  होती है ।

जैसे श्मशान घाट की  धरती देखने पर   मन्दिर परिसर की धरती जैसी  ही  लगती  है , वैसे ही  समुद्र पार की विदेशी भूमि भी देखने पर सामान्य भूमि ही लगती है । 

किन्तु श्मशान घाट में  मांगलिक अनुष्ठान करने वाला   धर्म का  विद्वान् होगा कि धर्म का मूर्ख ?

  स्थूल नेत्रों से देखने पर तो  गंगा और कर्मनाशा  दोनो   नदियॉ   जल की धारा  ही  दिखती   हैं  ,   माता   और    अपनी पत्नी  का शरीर रक्त  मांस का   पिण्ड ही  दीखता  है  , परन्तु  क्या  दोनों समान रूप से भोग्य होते  हैं ?

ऐसे  ही  विदेश की धरती  में जाने  वाला, वहॉ  रहकर   अन्न जल  ग्रहण करने  वाला   प्रत्येक   कुलीन   घनघोर अशुद्ध  एवं  अपवित्र     ही होता  है ।

।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।

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