गोपियों ने श्रीकृष्ण की प्राप्ति हेतु विशेष रूप से श्री कात्यायनी स्वरूपा भगवती पार्वती जी के उपासना की थी -
#हेमन्ते_प्रथमे_मासि_नन्दव्रजकमारिकाः |
#चेरुर्हविष्यं_भुञ्जानाः_कात्यायन्यर्चनव्रतम् || (श्रीमद्भागवतमहापुराण १०|२२|०१)
हे महामाया कात्यायनि ! हे महायोगिन्यधीश्वरि ! हे देवि ! नन्दगोप के पुत्र श्री कृष्ण को हमारा पति बना दीजिये ! हम आपको बारम्बार नमन करती हैं - इस प्रकार उपासना करती हुईं वे गोपियाँ #कात्यायनि_महामाये_महायोगिन्यधीश्वरि | #नन्दगोपसुतं_देवि_पतिं_मे_कुरु_ते_नमः || का ही मन्त्र जाप करतीं हुईं देवी भगवती को प्रसन्न करने हेतु व्रत को सम्पादित कीं ! इन महामाया भगवती भाद्रकालिका जी की कृपा से उनको स्वयं महायोगेश्वर श्री कृष्ण पति के रूप में प्राप्त भये !
जीव के दो प्रकार के सम्बन्ध होते हैं -
१-अविद्या सम्बन्ध
२- विद्या सम्बन्ध
अविद्या सम्बन्ध से गोपजन ही गोपियों के पति थे किन्तु विद्या सम्बन्ध से केवल योग्योगेश्वर , चिन्मय - पुरुषोत्तम श्री कृष्ण ही गोपियों के पति थे |
विद्या सम्बन्ध ही वस्तुतः जीव का सच्चा सम्बन्ध होता है, अविद्या सम्बन्ध नहीं |
|| जय श्री राम ||
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