Sunday, 14 April 2019

भोजन करने के सामान्य नियम

भोजन करने के  सामान्य नियम   -

१. सदैव शुद्ध होकर, आचमन करके ही भोजनालय ( रसोई)  में भोजनार्थ  प्रवेश करे ।

२.उत्तरीय ( दुपट्टा) और धोती पहने ।

३. श्रीखंड चंदन आदि का तिलक लगा के भोजनालय में जाये ।

४. भोजनालय  गोबर से लीपा हो  ।

५. भोजन से पूर्व  ब्राह्मण चतुष्कोण ,  क्षत्रिय त्रिकोण , वैश्य गोल मण्डल व  शूद्र केवल जल से अभिषेक करे ।

६.   #पितुन्नुस्तोषम्० इत्यादि मन्त्र से  पहले अन्न की स्तुति करे ।

७.  पुनः मानस्तोके नमो वः०  मन्त्र से उस परोसे अन्न को अभिमन्त्रित करे ।

८. फिर बलिवैश्वदेव यज्ञ  ( आहार का कुछ अंश मन्त्र के साथ बलि देना )  करे ।

९.  फिर अन्तश्चरसि० मन्त्र से भगवान् विष्णु का ध्यान करे, फिर अमृतोपस्त० मन्त्र से आचमन करे ।

१०. फिर  अन्न में अमृत का ध्यान करके  अपने मुख में पॉच आहुतियॉ दे -  प्राणाय स्वाहेति मन्त्रों से ।(  वाजसनेयी शाखानुसार )

११. ये  प्राणाहुतियॉ  दॉत से न काटे , वरन जीभ से चाट कर ही ग्रहण करे ।

१२. पहला कौर अंगुठे + मध्यमा , दूसरा मध्यमा+अनामिका, तीसरा कनिष्ठा+तर्जनी , चौथा अंगूठे के अतिरिक्त शेष चार , पॉचवा  पॉचों अंगुलियों से ग्रहण करे ।

१३. बॉये हाथ से, पैर से, पेडू से , सिर से  या विपरीत दिशा में रखा  अन्न न छुए ।

१४.  भोजन के अन्त में  अन्न लेकर  मद्भुक्तोच्छिष्टशेषं० मन्त्र   पढ़कर  अंगूठे व तर्जनी के बीच से गिरा दे ।

१५. फिर हाथ में जल लेकर अमृतापिधानम्० मन्त्र  से हाथ का आधा जल पीकर  शेष  आधा जल धरती पर गिराये ।

१६. फिर अर्थिनां सर्वभूतानां ०  मन्त्र पढ़कर भोजन स्थान से कुछ हटकर भरकुल्ला जल और सींक ( खरका ) से मुंह साफ करें ।

१७. फिर पुनः अच्छी तरह कुल्ला व आचमन कर दाहिने पैर के अंगूठे में अंगुष्ठमात्र पुरुष की भावना से  ईशः सर्वस्य जगतः०  मंत्र पढ़ते हुए हाथ से जलधारा गिराए ।

१८ फिर    पेट पकड़कर शर्यातिञ्च०  मंत्र पढ़े और  नमो भगवते वाजसनेयाय याज्ञवल्क्याय  दो बार  कहते हुए  हुए  स्मरण करे , और मुंह को अच्छी तरह साफ कर मुख शुद्धि करे । 

(ध्यातव्य -शाखाभेद से  कतिपयांश में प्रविधिभेद हो सकता है ।)

।। जय श्री राम ।।

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