ऐसा सुना जाता हैं कि केवल प्रणवमन्त्र का जप संन्यासी के अतिरिक्त अन्य आश्रमी करे तो उसका विपरीत फल होता हैं । क्या यह कथन ठीक हैं ?
उत्तर - यदि कोई व्यक्ति केवल प्रणवमन्त्र का जप करेगा तो उसका जगत् छूटेगा कारण प्रणव जगत् छुड़ानेवाला मन्त्र हैं । यदि वह मुमुक्षु नहीं हैं, तो जगत् छूटना उसके लिए विपरीत फल ही हैं । यदि वह मोक्षार्थी हैं तो जगत् छूटने से उसका क्या बिगड़ता हैं । मुमुक्षु के लिए केवल प्रणव-जप का विधान परम्परा अनुसार हैं और अन्य पुरुषों के लिए प्रणवयुक्त अन्य मन्त्रों के जप का विधान हैं ।
दुसरी बात, अन्य आश्रमी शिखा-सूत्र त्याग के बिना गायत्री मन्त्र कैसे छोड़ सकता हैं ! संन्यास में तो गायत्री मन्त्र का प्रणव में लय हो जाता हैं । साथ ही जैसे संन्यासी के लिए शास्त्र में प्रणव-जप की विधि हैं, वैसे अन्य आश्रमी के लिए नहीं हैं । इन्हीं सब बातों पर विचार करने पर यह स्पष्ट हैं कि केवल प्रणव का जप संन्यासी के लिए ही उचित हैं ।
इस प्रसंग पर जगद्गुरु श्रीशंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती जी महाराज के उपदेश " The Rocks Are Melting " नामक ग्रन्थ में हैं -
लखनऊ में महाराज जी एक वृद्धा से मिले जिनके दो जवान बेटे की मौत हो गयी कुछ दिनों पहले । लोगों के कहा कि वृद्धा दिनभर जप-ध्यान करती थी ।
महाराज जी ने पुछा, " माताजी, क्या आप प्रणव-जप करती हो ? "
वृद्धा-" महाराज जी ! वह तो मेरा जीने का सहारा हैं । प्रणवमन्त्र दिनभर जपती हूँ मैं । क्यों, नहीं करना चाहिए क्या महाराज जी ? "
महाराज जी - " प्रणवमन्त्र जप से संसार नष्ट कर दी हैं आपने, अब इसे छोड़ना मत । "
श्रद्धा एवं निष्ठा समेत कोई गृहस्थ यदि दिन में हज़ारों बार केवल प्रणव जप करे तो उसका संसार से आसक्ति छूट जायेगा, उपार्जन कम होता जायेगा, स्त्री-सन्तान रोग से पीड़ित हो एवं मर भी सकते हैं । प्रणव का यह स्वभाव हैं कि जिसमें आसक्ति हो उसे नष्ट कर देता हैं । इसीलिए गृहस्थ का हित सोचकर ही शास्त्र में प्रणवमन्त्र जप का निषेध हैं । पुरुषों के लिए प्रणव-युक्त अन्य मन्त्रों जप का विधान हैं, परंतु स्त्रीयों के लिए श्री-युक्त मन्त्र जप करना शास्त्रसम्मत हैं । भगवान् महादेव ने माता पार्वती जी को उपदेश देते समय कहा कि स्त्रीयों के लिए ॐ विष-समान हैं एवं स्त्रीयों को ॐ युक्त मन्त्र जप नहीं करना चाहिए ।
प्रश्न - जब प्रणव संसार छुड़ा देता है तो अन्य आश्रम के पुरुष प्रणवयुक्त मन्त्र क्यों जपते है ? अन्य मन्त्र युक्त होने पर प्रणव की अनासक्ति प्रदान करने की क्षमता का क्या होता है ?
उत्तर - प्रणव सर्वोपरि मन्त्र हैं, पर इसके उच्चारण में बड़ा तेज हैं जो सहन कर पाना कठिन हैं, प्रकृत संन्यासी कर पाते हैं ; इसलिए तेज कम करने के लिए ॐ के साथ हरि योग करके हरि ॐ आदि कर दिया जाता हैं ताकि तेज कम होकर सौम्य हो जाए, तथा बीज रूप में ॐ का प्रयोग करने से मन्त्र की पापनाशक शक्ति वृद्धि होती हैं|
।। जय श्री हरि ।।
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