!(1)स्कंदग्रहचिकित्सा - स्कंदग्रह से पीडित बालकों को वायुनाशक वृक्षों के पत्तों के क्वाथ से स्नान कराना श्रेष्ठ होता हैं। और उन्हीं के मूल से तैल पकाकर उसमें सर्वगंधा, आँटे का माँड, महानिंब इन सबको डाल कर इस तैल से बालक के शरीरपर मर्दन करें। देवदारु , रास्ना, काकोल्यादि घृत को दूध के साथ मिलाकर पिलावें, सरसौं साँप की केंचुली, वच, काकादनी, घृत तथा ऊँट, बकरी, भेड, और गौ के बाल मिलाकर बालक को धूप देना चाहिये। सोमवल्ली, इंद्रवृक्ष,जांट, बिल्ववृक्ष के काँटे की नोंक निकाल कर वे नोंकरहित काँटे और ईन्द्रायण की जड़ इनको लाल धागे में गूँथकर गले या हाथ में धारण करायें।
बलिदानविधि -- सूर्यास्त के बाद रक्तपुष्प, लाल छोटीं धजाएं, अनेक प्रकार के लौंग,जायफल,ऐलची, अत्तर आदि सुगंध तथा कईं प्रकार के बड़े,पूरे,भात,आदि भक्ष्य और आँटा गूँदकर मूर्गे की मूर्ति बनाकर वाँस की टोपली में - इन सबको रखकर चौराहे में बालक के हित के लिये घंटा बजाकर बलिभेंट करना चाहिये।
हाथ में जल लेकर संकल्प करें -- "(तपसां तेजसां चैव यशसां वपुषां तथा। निधानं योव्ययोः देवः स ते स्कंदः प्रसीदतु। ग्रहसेनापतिर्देवो देवसेनापतिर्विभुः। देवसेनारिपुहरः पातु त्वां भगवान्गुहः। देवदेवस्य महतः पावकस्य च यः सुतः। गंगोऽमाकृत्तिकानां च स ते शर्म प्रयच्छतु। रक्तमाल्यांबरः श्रीमान् रक्त चंदनभूषितः। रक्तदिव्यवपुर्देवः पातु त्वां क्रोंचसूदनः।।---- अनेन बलिदानेन स्कन्दः प्रीयताम्।। सुश्रुत संहिता उत्तर २८/९-१२।।)"
इस प्रकार तीनरात तक चौराहेपर बलि देकर अपने शरीर पर जल छिंडकने के बाद घर आकर घर के बहार स्नान करके, ब्राह्मण द्वारा अभिमंत्रित गायत्रीमंत्र के जल का स्वयं आचमन कर, बालक को भी पीलावे। तदनन्तर प्रज्वलित अग्नि में घृतमिश्रित जौ और चावल की २८/२८ आहुतियाँ ब्राह्मण द्वारा गायत्रीमंत्र की दे - आहुति के अन्त में इदं सवित्रे न मम " उच्चार स्वयं करे।
(2) स्कंदापस्मार चिकित्सा - बिल्व, शिरीष, सफेद दूर्वा आदि के क्वाथ मिश्र जल से बालकको स्नान करायें, एलादिगण से पकाया हुआ तैल मर्दन करे। गूलर, पीपल, बरगद आदि के क्वाथ में तथा काकोल्यादि घृत में दूध मिलाकर बालक को पिलाये। वच, हींग मिलाकर उबटन कर गीध, उलूक इनकी बीट और पंख, हाथी के नख, घृत, बैल के बाल इनको मिलाकर बालक को धूप देवे। उत्पल,सारीवा, सेमल, कंदूरी तथा किवांच - इन में से किसी जड़ को गले या हाथ में बाँधे।
बलिदानविधि - सूर्यास्त के बाद जल में पके हुएं उड़िद में हींग मिलाकर, रतांजली का जल और दूध -- ये सब वांस की टोकरी में रखकर उद्यान में गड़्डा खोदकर उसमें रखे और हाथ में जल लेकर संकल्प करे - "( स्कंदापस्मार संज्ञो यः स्कंदस्य दयितः सखा। विशाखसंज्ञश्च शिशोः शिवोस्तु विकृताननः।।) जल बलिद्रव्यों पर छोड दे -- अनेन बलिदानेन स्कंदापस्मार प्रीयताम्।। बालक को चौराहे पर " स्कंदापस्मार" आदि उक्त मंत्र से स्नान करायें।। सुश्रुत संहिता उत्तर ० अ २९/६-८।।)"
Wednesday, 12 December 2018
स्कन्द चिकित्सा
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