Tuesday, 11 September 2018

वर्ण और जाति में समानता है ?

#प्रश्न - वर्ण और जाति - दोनों एक ही (समानार्थक)  शब्द हैं या अलग अलग ?

#उत्तर -   दोनों एक ही  हैं ।  वर्ण कहो  या जाति - एक ही बात है । 

ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र - ये चार  वर्ण मानव   की  प्रधान  जातियॉ हैं ।

श्री ब्रह्माजी नामक  ब्रह्मलोक के महान् देवता  के  दिव्य  मुखादि  अंगों से  सृष्टि के आरम्भ में   पैदा हुए - इसलिये इनको #जाति कहते हैं, परमात्मा  ने इन जीवों को इनके पूर्वजन्मों के  गुण -कर्मों से चुना था , इसलिये ये #वर्ण कहलाते हैं । 

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#प्रश्न -इन दोनों शब्दों का एकार्थ किस रीति  सिद्ध है , क्योंकि  वर्णऔर जाति  शब्द  तो अलग अलग हैं ?

#उत्तर - जैसे, -

#कानन  और #अरण्य    -ये परस्पर     पर्यायवाची शब्द है ।  दोनों शब्द जिस  वन  का  बोध कराते हैं, वो  बोध  एक ही है ।

इसी प्रकार, -

वर्ण और जाति - ये पर्यायवाची शब्द हैं । दोनों शब्द जिस  ब्राह्मणादि  का बोध कराते हैं, वो एक ही है ।

जैसे , -

कानन का अर्थ कस्य ब्रह्मणः  आननम्    इस प्रकार  ब्रह्ममुख आदि  भी  किया जा सकता है,  अथवा कं जलम् अननं जीवनम् अस्य इस प्रकार अन्यार्थ भी प्रयोग किये जा सकते हैं,

इसी प्रकार, -

वर्ण शब्द के अन्य भी अनेक अर्थ हो सकते हैं , किन्तु इन सब विविधार्थों के मध्य  अरण्य या वन अर्थ भी कानन का होता है, इसी प्रकार वर्ण शब्द का अर्थ जाति  होता है, इसमें  किसी भी प्रकार की  कोई विप्रतिपत्ति नहीं है ।

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#प्रश्न - तो फिर  हिन्दू धर्म की  जाति व्यवस्था का  तरह तरह  प्रकारों से  लोग विरोध क्यों करते हैं आजकल ?

#उत्तर -  सुनिये, -

जिनके बाप -दादे  अपने पुरखों की शुद्ध जाति परम्परा से गिर कर म्लेच्छ हो  गये हैं, ऐसे कुछ   स्वधर्मभ्रष्ट परिवारों  की सन्तानें  कहती हैं कि जाति व्यवस्था   हिन्दू धर्म का  कोई भी  अंग नहीं है ।

किन्तु जिनके बाप दादे अपने पुरखों की शुद्ध जाति परम्परा को सम्भालते हुए आये , ऐसे तपस्वियों की सन्तानें कहती हैं जाति व्यवस्था हिन्दू धर्म की आधारशिला है ।

धार्मिक जाति व्यवस्था का विरोध करना  वस्तुतः लोगों की  व्यक्तिगत / पारिवारिक समस्या की पहचान है ।

पूर्वपक्ष - यह ठीक नहीं है । वर्ण तो जातिवाचक है पर जाति वर्णवाचक नहीं । जातियाँ अनन्त हैं पर वर्ण तो चार ही है । यदि जाति वर्ण हो तो बताओ एक कुत्ते या गधे का क्या वर्ण है ?

उत्तर पक्ष - यह आपका अज्ञान है । वर्ण और जाति दोनों की सृष्टि का हेतु  एक ही है , वह है - गुणविभाग और कर्मविभाग  । इस कारण  दोनों पर्याय हैं । मानव योनि का कर्म में   अधिकार होने से मानव के लिये इस नैसर्गिक वर्णव्यवस्था का विशेष विचार किया जाता है ।  पशु, पक्षी, वृक्षादि से लेकर उत्कृष्ट देवलोकादि पर्यन्त यह वर्णव्यवस्था अनुस्यूत है ।
देवादि लोकों में वर्णव्यवस्था का स्वरूप क्या होगा , इस पर आपको इस प्रकार  विचार करना चाहिये -

https://www.facebook.com/govardhanpeeth/videos/1607089529315484/

।। जय श्री राम ।।

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