Wednesday, 8 August 2018

सेंधा नमक

#जो_समुद्री_नमक_आपके_ब्रत(उपवास) #को_भंग_कर_देता_है?
#वह_आपके_शरीर_के_लिए_कैसे #लाभकारी_हो_सकता_है!!

सेंधा नमक : भारत से कैसे गायब कर दिया गया, शरीर के लिए Best Alkalizer है :-

आप सोच रहे होंगे की ये सेंधा नमक बनता कैसे है ?? आइये आज हम आपको बताते हैं कि नमक मुख्य कितने प्रकार होते हैं। एक होता है समुद्री नमक दूसरा होता है सेंधा नमक (rock salt)
। सेंधा नमक बनता नहीं है पहले से ही बना बनाया है। पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को ‘सेंधा नमक’ या ‘सैन्धव नमक’, लाहोरी नमक आदि आदि नाम से जाना जाता है । जिसका मतलब है ‘सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ’। वहाँ नमक के बड़े बड़े पहाड़ है सुरंगे है । वहाँ से ये नमक आता है। मोटे मोटे टुकड़ो मे होता है आजकल पीसा हुआ भी आने लगा है यह ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मदद रूप, त्रिदोष शामक, शीतवीर्य अर्थात ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का है । इससे पाचक रस बढ़्ते हैं। तों अंत आप ये समुद्री नमक के चक्कर से बाहर निकले।
काला नमक ,सेंधा नमक प्रयोग करे, क्यूंकि ये प्रकृति का बनाया है ,ईश्वर का बनाया हुआ है। और सदैव याद रखे इंसान जरूर शैतान हो सकता है लेकिन प्रकृति कभी शैतान नहीं होती।

भारत मे 1930 से पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था विदेशी कंपनिया भारत मे नमक के व्यापार मे आज़ादी के पहले से उतरी हुई है , उनके कहने पर ही भारत के अँग्रेजी प्रशासन द्वारा भारत की भोली भली जनता को आयोडिन मिलाकर समुद्री नमक खिलाया जा रहा है,
हुआ ये कि जब ग्लोबलाईसेशन के बाद बहुत सी विदेशी कंपनियो (अनपूर्णा,कैपटन कुक ) ने नमक बेचना शुरू किया तब ये सारा खेल शुरू हुआ ! अब समझिए खेल क्या था ?? खेल ये था कि विदेशी कंपनियो को नमक बेचना है और बहुत मोटा लाभ कमाना है और लूट मचानी है तो पूरे भारत मे एक नई बात फैलाई गई कि आयोडीन युक्त नामक खाओ , आयोडीन युक्त नमक खाओ ! आप सबको आयोडीन की कमी हो गई है। ये सेहत के लिए बहुत अच्छा है आदि आदि बातें पूरे देश मे प्रायोजित ढंग से फैलाई गई । और जो नमक किसी जमाने मे 2 से 3 रूपये किलो मे बिकता था । उसकी जगह आओडीन नमक के नाम पर सीधा भाव पहुँच गया 8 रूपये प्रति किलो और आज तो 20 रूपये को भी पार कर रहा है।

दुनिया के 56 देशों ने अतिरिक्त आयोडीन युक्त नमक 40 साल पहले ban कर दिया अमेरिका मे नहीं है जर्मनी मे नहीं है फ्रांस मे नहीं ,डेन्मार्क मे नहीं , डेन्मार्क की सरकार ने 1956 मे आओडीन युक्त नमक बैन कर दिया क्यों ?? उनकी सरकार ने कहा हमने मे आयोडीन युक्त नमक खिलाया !(1940 से 1956 तक ) अधिकांश लोग नपुंसक हो गए ! जनसंख्या इतनी कम हो गई कि देश के खत्म होने का खतरा हो गया ! उनके वैज्ञानिको ने कहा कि आयोडीन युक्त नमक बंद करवाओ तो उन्होने बैन लगाया। और शुरू के दिनो मे जब हमारे देश मे ये आयोडीन का खेल शुरू हुआ इस देश के बेशर्म नेताओ ने कानून बना दिया कि बिना आयोडीन युक्त नमक भारत मे बिक नहीं सकता । वो कुछ समय पूर्व किसी ने कोर्ट मे मुकदमा दाखिल किया और ये बैन हटाया गया।

आज से कुछ वर्ष पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था सब सेंधा नमक ही खाते थे ।

#सेंधा_नमक_के_फ़ायदे:-

सेंधा नमक के उपयोग से रक्तचाप और बहुत ही गंभीर बीमारियों पर नियन्त्रण रहता है । क्योंकि ये अम्लीय नहीं ये क्षारीय है (alkaline) क्षारीय चीज जब अमल मे मिलती है तो वो न्यूटल हो जाता है और रक्त अमलता खत्म होते ही शरीर के 48 रोग ठीक हो जाते हैं ।

ये नमक शरीर मे पूरी तरह से घुलनशील है । और सेंधा नमक की शुद्धता के कारण आप एक और बात से पहचान सकते हैं कि उपवास ,व्रत मे सब सेंधा नमक ही खाते है। तो आप सोचिए जो समुद्री नमक आपके उपवास को अपवित्र कर सकता है वो आपके शरीर के लिए कैसे लाभकारी हो सकता है ??

सेंधा नमक शरीर मे 97 पोषक तत्वो की कमी को पूरा करता है ! इन पोषक तत्वो की कमी ना पूरी होने के कारण ही लकवे (paralysis)  का अटैक आने का सबसे बढ़ा जोखिम होता है सेंधा नमक के बारे में आयुर्वेद में बोला गया है कि यह आपको इसलिये खाना चाहिए क्योंकि सेंधा नमक वात, पित्त और कफ को दूर करता है।

यह पाचन में सहायक होता है और साथ ही इसमें पोटैशियम और मैग्नीशियम पाया जाता है जो हृदय के लिए लाभकारी होता है। यही नहीं आयुर्वेदिक औषधियों में जैसे लवण भाष्कर, पाचन चूर्ण आदि में भी प्रयोग किया जाता है।

#समुद्री_नमक_के_भयंकर_नुकसान :-

ये जो समुद्री नमक है आयुर्वेद के अनुसार ये तो अपने आप मे ही बहुत खतरनाक है ! क्योंकि कंपनियाँ इसमे अतिरिक्त आयोडीन डाल रही है। अब आयोडीन भी दो तरह का होता है एक तो भगवान का बनाया हुआ जो पहले से नमक मे होता है । दूसरा होता है “industrial iodine”  ये बहुत ही खतरनाक है। तो समुद्री नमक जो पहले से ही खतरनाक है उसमे कंपनिया अतिरिक्त industrial iodine डाल को पूरे देश को बेच रही है। जिससे बहुत सी गंभीर बीमरिया हम लोगो को आ रही है । ये नमक मानव द्वारा फ़ैक्टरियों मे निर्मित है।

आम तौर से उपयोग मे लाये जाने वाले समुद्री नमक से उच्च रक्तचाप (high BP ) ,डाइबिटीज़, आदि गंभीर बीमारियो का भी कारण बनता है । इसका एक कारण ये है कि ये नमक अम्लीय (acidic) होता है । जिससे रक्त अम्लता बढ़ती है और रक्त अमलता बढ्ने से ये सब 48 रोग आते है । ये नमक पानी कभी पूरी तरह नहीं घुलता हीरे (diamond ) की तरह चमकता रहता है इसी प्रकार शरीर के अंदर जाकर भी नहीं घुलता और अंत इसी प्रकार किडनी से भी नहीं निकल पाता और पथरी का भी कारण बनता है ।

ये नमक नपुंसकता और लकवा (paralysis ) का बहुत बड़ा कारण है समुद्री नमक से सिर्फ शरीर को 4 पोषक तत्व मिलते है ! और बीमारिया जरूर साथ मे मिल जाती है !

रिफाइण्ड नमक में 98% सोडियम क्लोराइड ही है शरीर इसे विजातीय पदार्थ के रुप में रखता है। यह शरीर में घुलता नही है। इस नमक में आयोडीन को बनाये रखने के लिए Tricalcium Phosphate, Magnesium Carbonate, Sodium Alumino Silicate जैसे रसायन मिलाये जाते हैं जो सीमेंट बनाने में भी इस्तेमाल होते है। विज्ञान के अनुसार यह रसायन शरीर में रक्त वाहिनियों को कड़ा बनाते हैं, जिससे ब्लाक्स बनने की संभावना और आक्सीजन जाने मे परेशानी होती है। जोड़ो का दर्द और गढिया, प्रोस्टेट आदि होती है। आयोडीन नमक से पानी की जरुरत ज्यादा होती है। 1 ग्राम नमक अपने से 23 गुना अधिक पानी खींचता है। यह पानी कोशिकाओ के पानी को कम करता है। इसी कारण हमें प्यास ज्यादा लगती है।

निवेदन :पांच हजार साल पुरानी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में भी भोजन में सेंधा नमक के ही इस्तेमाल की सलाह दी गई है। भोजन में नमक व मसाले का प्रयोग भारत, नेपाल, चीन, बंगलादेश और पाकिस्तान में अधिक होता है। आजकल बाजार में ज्यादातर समुद्री जल से तैयार नमक ही मिलता है। जबकि 1960 के दशक में देश में लाहौरी नमक मिलता था। यहां तक कि राशन की दुकानों पर भी इसी नमक का वितरण किया जाता था। स्वाद के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता था। समुद्री नमक के बजाय सेंधा नमक का प्रयोग होना चाहिए।

आप इस अतिरिक्त आयोडीन युक्त समुद्री नमक खाना छोड़िए और उसकी जगह सेंधा नमक खाइये !! सिर्फ आयोडीन के चक्कर में समुद्री नमक खाना समझदारी नहीं है, क्योंकि जैसा हमने ऊपर बताया आयोडीन हर नमक मे होता है सेंधा नमक मे भी आयोडीन होता है बस फर्क इतना है इस सेंधा नमक मे प्राकृतिक के द्वारा भगवान द्वारा बनाया आयोडीन होता है इसके इलावा आयोडीन हमें आलू, अरवी के साथ-साथ हरी सब्जियों से भी मिल जाता है।।

लवण के ५ भेद हैं।

  सैंधव; सौवीर; सामुद्र ,विड एवं रेह।

     काला नमक बनाया सैन्धव लवण की प्रोसेस से ही बनाया जाता हैं।

    लवण सारे लवण रस युक्त , #उष्ण_वीर्य एवं मधुर विपाक युक्त होते हैं।

     कोई लवण शीतवीर्य नहीं होता।

सारे लवण कोथकारक होते हैं। अतः लवण कम ही खाना चाहिए।
#प्रश्न_नही_स्वाध्याय_करे!!

द्वादश ज्योतिर्लिंग

----द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग---

##लीनं गमयति इति लिङ्गम्!
##लयनाल्लिङ्गमित्याहु:!!
जिसमें सम्पूर्ण सृष्टि का विलय हो जाये वह लिङ्ग है!

ज्योति शब्द का अर्थ प्रकाश है,और लिङ्ग का चिह्न!
##लीनं प्रच्छन्नस्वरूपं प्रकटयति यत् तत् लिङ्गम् !

अर्थात् जो चिह्न परब्रह्म परमात्मा के स्वरूप का अवबोधन करा दे,वह  लिङ्ग है!

ब्रह्मसूत्र -वेदान्त दर्शन में--->
""ज्योतिश्चरणाभिधानात्""
इस सूत्र द्वारा "ज्योति"
को परब्रह्म का अभिव्यञ्जक माना गया है!
"लिङ्ग पुराण"में तो कहा है कि ये चराचर जगत ही लिङ्ग में ही प्रतिष्ठित है!

(लिङ्गे सर्वं प्रतिष्ठितम्)

द्वादश शब्द बारह संख्या का वाचक है,ज्योति सूर्य का वाचक है!

'''''सूर्ये ज्योति: स्वाहा""!

इस वचन से ज्योति का प्रादुर्भाव सूर्य से माना गया है!
सूर्य जगत में द्वादश आदित्य रूप में प्रसिद्ध हैं,इसीलिये ज्योतिर्लिङ्ग भी बारह हैं!

मदाद्य जगद्गुरु पूज्यपाद भगवान शंकराचार्य जी ने इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों का स्थान नाम देश दिशा आदि अपने ""श्रीद्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्त्रोत्रम् ""में बताया है। ----

१-सोमनाथ

"##सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये, ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतन्सम्!

भक्ति प्रदानाय कृपावतीर्णं,
तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये!!

अर्थात् जो अपनी भक्ति प्रदान करने के लिये अत्यन्त रमणीय तथा निर्मल सौराष्ट्र प्रदेश(काठियावाड)में दयापूर्वक अवतीर्ण हुये हैं!

चन्द्रमा जिनके मस्तक का आभूषण है,उन ज्योतिर्लिंग स्वरूप भगवान सोमनाथ की शरण में मैं जाता हूँ!

महात्मा प्रजापति दक्ष ने अपनी सत्ताइस कन्याओं को चन्द्रमा के लिये दान किया!

जिसमें रोहिणी नाम की पत्नी से चन्द्रमा को विशेष लगाव हुआ,और अन्य पत्नियों को तिरस्कृत कर दिया!

अन्य पत्नियाँ अपने पिता प्रजापति दक्ष से यह बात कही!

दक्ष ने चन्द्र को समझाया पर भोग प्रवृत्ति के कारण वह उनकी बातों की अवहेलना कर गए!

जिससे क्षय होने का शाप दक्ष द्वारा उन्हें मिला!

चन्द्र क्षयरोग से व्याकुल हो  ब्रह्मा जी के पास गया, तब ब्रह्मा जी ने कहा---

इच्छित फल बिनु शिव अवराधें!
लहिअ न कोटि जोग जप साधें!!

चन्द्र शिव जी की आराधना करो क्योंकि--

भाविउ मेट सकहिं त्रिपुरारी!

वे आने वाले समस्त कष्ट का नाश करने में सक्षम हैं!

चन्द्र ने प्रभास क्षेत्र में आकर तप किया,और शिव जी के कृपा से क्षय रोग से मुक्ति प्राप्त की!

सोम पर कृपा करने से प्रभु सोमनाथ नाम से विख्यात हुये!
ये प्रभास क्षेत्र भगवान श्रीकृष्ण जी के अंतिम लीला का स्थान रहा है!

Tuesday, 7 August 2018

विद्युत की खोज भारत में हुई

महर्षि अगस्त्य की उत्पत्ति रहस्य ।

रामायण में वर्णित अलंकारिक कथा में वसिष्ठ- अगस्त्य की उत्पत्ति मित्रावरुणके वीर्य को घड़े में संचित करने से हुई है । वास्तव में यह एक वैज्ञानिक विधा है ,जिसे गुप्त रखने के लिये इस तरह अलंकारिक रूपक बनाकर लिखा गया है । वास्तव में यह रहस्य है ,विद्युतके उत्पादन का ।
आप यह तो जानते ही होंगे ,विद्युतके दो रूप हैं । एक अप्रकट रूप जो आकाश में और तारों में विद्यमान रहता है । दूसरा है प्रकट रूप जो अम्बरके संयोग होने पर , और बल्व के स्विच ऑन करने पर बल्व के माध्यम से दृष्टिगोचर होता है । अप्रकट तड़ित तो विद्यमान है ही ,लेकिन प्रकट रूप के लिये एक विधा विशेष की आवश्यकता होती है । अन्यथा आकाशमें अम्बर के संयोग होने पर तड़ित दृष्टिगोचर होगी ,उसे मनुष्य अपने उपयोग में नहीं ला सकेगा । आपने कथा सुनी मित्र - वरुण ने अपना वीर्य घड़े में संचित किया ,जिससे अगस्त्य वसिष्ठ-अगस्त्य ऋषि की उत्पत्ति हुई । मित्र सूर्य का नाम है और वरुण जल का । सूर्य और जल से ही ऊर्जा उत्पन्न की जाती है । (सूर्य से उत्पन्न सौलर लाइट है जो सूर्य की ऊर्जा से उत्पन्न की जाती है । जल से उत्पन्न बिजली जिसे हम सामान्यतय प्रयोग में ला रहे हैं ) कहने का तात्पर्य है मित्रावरुण शक्ति विद्युत का नाम है ,जो अप्रकट रूप है , जब यह शक्ति घट में प्रवाहित होती है ,तब उस घट से वसिष्ठ-अगस्त्य प्रकट विद्युत की उत्पत्ति होती है । अर्थात् अप्रकट विद्युत को प्रकट विद्युत बनाने की विधा है ,अगस्त्य उत्पत्ति रहस्य । अगस्त्य संहिता में स्वयं अगस्त्य ऋषि ने इस विधा का विस्तार से वर्णन किया है ।
हम मानते हैं की विद्युत बैटरी का आविष्कार बेंजामिन फ़्रेंकलिन ने किया था, किन्तु आपको यह जानकार सुखद आश्चर्य होगा की बैटरी के बारे में सर्वप्रथम एक हिन्दू ने विश्व को बतलाया

अगस्त्य संहिता में महर्षि अगस्त्य ने बैटरी निर्माण की विधि का वर्णन किया था ।
अगस्त्य संहिता में एक सूत्र हैः

संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌। छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:। संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥

अर्थात् एक मिट्टी का बर्तन लें, उसमें अच्छी प्रकार से साफ किया गया ताम्रपत्र और शिखिग्रीवा (मोर के गर्दन जैसा पदार्थ अर्थात् कॉपरसल्फेट) डालें। फिर उस बर्तन को लकड़ी के गीले बुरादे से भर दें। उसके बाद लकड़ी के गीले बुरादे के ऊपर पारा से आच्छादित दस्त लोष्ट (mercury-amalgamated zinc sheet) रखे।
इस प्रकार दोनों के संयोग से अर्थात् तारों के द्वारा जोड़ने पर मित्रावरुणशक्ति की उत्पत्ति होगी। यहाँ पर उल्लेखनीय है कि यह प्रयोग करके भी देखा गया है जिसके परिणामस्वरूप 1.138 वोल्ट तथा 23 mA धारा वाली विद्युत उत्पन्न हुई। स्वदेशी विज्ञान संशोधन संस्था (नागपुर) के द्वारा उसके चौथे वार्षिक सभा में ७ अगस्त, १९९० को इस प्रयोग का प्रदर्शन भी विद्वानों तथा सर्वसाधारण के समक्ष किया गया।

अगस्त्य संहिता में आगे लिखा हैः
अनेन जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु। एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥
अर्थात सौ कुम्भों (अर्थात् उपरोक्त प्रकार से बने तथा श्रृंखला में जोड़े ग! सौ सेलों) की शक्ति का पानी में प्रयोग करने पर पानी अपना रूप बदल कर प्राण वायु (ऑक्सीजन) और उदान वायु (हाइड्रोजन) में परिवर्तित हो जाएगा।

फिर लिखा गया हैः
वायुबन्धकवस्त्रेण निबद्धो यानमस्तके उदान स्वलघुत्वे बिभर्त्याकाशयानकम्‌।

अर्थात् उदान वायु (हाइड्रोजन) को बन्धक वस्त्र (air tight cloth) द्वारा निबद्ध किया जाए तो वह विमान विद्या (aerodynamics) के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। स्पष्ट है कि यह आज के विद्युत बैटरी का सूत्र (Formula for Electric battery) ही है। साथ ही यह प्राचीन भारत में विमान विद्या होने की भी पुष्टि करता है।

Wednesday, 1 August 2018

सनातन वैदिकधर्म की प्रचण्ड शक्ति

#श्री_आद्य_शंकराचार्य_सन्देश=->

#कट्टर_ब्राह्मणत्व और #कट्टर_शास्त्राश्रय - ये दो  सनातन वैदिक धर्म की प्रचण्ड शक्ति हैं ।

ब्राह्मण का कर्तव्य है कि वह कट्टर शास्त्राश्रयरूप कोदण्ड (धनुष) पर कट्टर ब्राह्मणत्व का तीक्ष्ण बाण  समाश्रित कर  असुरता का मर्मभेदन कर दे ।

देव भावनाओं से भरे ब्राह्मण का आत्म-बल ही धनुष है। उसकी वाणी प्रत्यंचा है। उसका तप बाण है। इस अचूक ब्रह्मास्त्र से सुसज्जित ब्रह्मवेत्ता असुरता को बेध कर रख देता है-

#जिह्वाज्या_भवति_कुल्मलं_वाँ_नाडीका #दन्तास्पतसाभिदिग्धाः_तेभिर्ब्रह्माविध्यति
#देवपीयून्हृदयबलैर्धनुर्भिर्देवजूतैः।

(अथर्ववेद ५/१८/०८)

।। जय श्री राम ।।

पूजा आदि में सिर नहीं ढंका चाहिए

शास्त्र प्रमाण:- उष्णीषो कञ्चुकी चात्र मुक्तकेशी गलावृतः ।  प्रलपन् कम्पनश्चैव तत्कृतो निष्फलो जपः ॥ अर्थात् - पगड़ी पहनकर, कुर्ता पहनकर, नग...