Wednesday, 8 August 2018

द्वादश ज्योतिर्लिंग

----द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग---

##लीनं गमयति इति लिङ्गम्!
##लयनाल्लिङ्गमित्याहु:!!
जिसमें सम्पूर्ण सृष्टि का विलय हो जाये वह लिङ्ग है!

ज्योति शब्द का अर्थ प्रकाश है,और लिङ्ग का चिह्न!
##लीनं प्रच्छन्नस्वरूपं प्रकटयति यत् तत् लिङ्गम् !

अर्थात् जो चिह्न परब्रह्म परमात्मा के स्वरूप का अवबोधन करा दे,वह  लिङ्ग है!

ब्रह्मसूत्र -वेदान्त दर्शन में--->
""ज्योतिश्चरणाभिधानात्""
इस सूत्र द्वारा "ज्योति"
को परब्रह्म का अभिव्यञ्जक माना गया है!
"लिङ्ग पुराण"में तो कहा है कि ये चराचर जगत ही लिङ्ग में ही प्रतिष्ठित है!

(लिङ्गे सर्वं प्रतिष्ठितम्)

द्वादश शब्द बारह संख्या का वाचक है,ज्योति सूर्य का वाचक है!

'''''सूर्ये ज्योति: स्वाहा""!

इस वचन से ज्योति का प्रादुर्भाव सूर्य से माना गया है!
सूर्य जगत में द्वादश आदित्य रूप में प्रसिद्ध हैं,इसीलिये ज्योतिर्लिङ्ग भी बारह हैं!

मदाद्य जगद्गुरु पूज्यपाद भगवान शंकराचार्य जी ने इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों का स्थान नाम देश दिशा आदि अपने ""श्रीद्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्त्रोत्रम् ""में बताया है। ----

१-सोमनाथ

"##सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये, ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतन्सम्!

भक्ति प्रदानाय कृपावतीर्णं,
तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये!!

अर्थात् जो अपनी भक्ति प्रदान करने के लिये अत्यन्त रमणीय तथा निर्मल सौराष्ट्र प्रदेश(काठियावाड)में दयापूर्वक अवतीर्ण हुये हैं!

चन्द्रमा जिनके मस्तक का आभूषण है,उन ज्योतिर्लिंग स्वरूप भगवान सोमनाथ की शरण में मैं जाता हूँ!

महात्मा प्रजापति दक्ष ने अपनी सत्ताइस कन्याओं को चन्द्रमा के लिये दान किया!

जिसमें रोहिणी नाम की पत्नी से चन्द्रमा को विशेष लगाव हुआ,और अन्य पत्नियों को तिरस्कृत कर दिया!

अन्य पत्नियाँ अपने पिता प्रजापति दक्ष से यह बात कही!

दक्ष ने चन्द्र को समझाया पर भोग प्रवृत्ति के कारण वह उनकी बातों की अवहेलना कर गए!

जिससे क्षय होने का शाप दक्ष द्वारा उन्हें मिला!

चन्द्र क्षयरोग से व्याकुल हो  ब्रह्मा जी के पास गया, तब ब्रह्मा जी ने कहा---

इच्छित फल बिनु शिव अवराधें!
लहिअ न कोटि जोग जप साधें!!

चन्द्र शिव जी की आराधना करो क्योंकि--

भाविउ मेट सकहिं त्रिपुरारी!

वे आने वाले समस्त कष्ट का नाश करने में सक्षम हैं!

चन्द्र ने प्रभास क्षेत्र में आकर तप किया,और शिव जी के कृपा से क्षय रोग से मुक्ति प्राप्त की!

सोम पर कृपा करने से प्रभु सोमनाथ नाम से विख्यात हुये!
ये प्रभास क्षेत्र भगवान श्रीकृष्ण जी के अंतिम लीला का स्थान रहा है!

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