गृहस्थ ब्राह्मणों का कर्तव्य-
हरेक गृहस्थ ब्राह्मण का कर्तव्य है कि सायं प्रातः अग्निहोत्र करे (अहरहः स्वाहा कुर्यात् / अग्निहोत्रं जुहूयात् )
अग्निहोत्री को ही तो संन्यास लेने का भी अधिकार है न, वही अग्निवस्त्र (भगवा)धारी( संन्यस्त ब्राह्मण) ही तो इस चौरासी लाख अरों वाले भवचक्रव्यूह से पार उतर कर मोक्ष पाने का अधिकारी होगा !
अब जो शास्त्र की आज्ञा पालन नहीं करते, उनकी बात तो छोड़ दीजिये , उनकातोमहिषवाहन यमराज नामक देवता ही भगवान् है, जो करना चाहते हैं पर विवाह के समय अग्नि को सम्भालना है, ध्यान ही नहीं रहा किसी विशेष कारणवश , या फिर ध्यान तो रहा पर परिस्थियों के विपरीत होने से कुछ कर नहीं पाये , अब क्या होगा उनका?
तो शास्त्र ने मार्ग दिया कि जिस समय आपके पिता दायभाग काबंटवारा करेंगे , तब करना आरम्भ अग्निहोत्र ,
पर दाय भाग भी हो गया या हो या न हो , परिस्थितियॉ ही ऐसी हैं कि चाहकर भी नहीं कर पाते, उनका क्या होगा ?
तब शास्त्र पुनः सन्मार्ग देकर कहा, जो ब्राह्मण अग्निहोत्री नहीं है , उसका कल्याण. तीक्ष्ण व्रतों , उपवास , नियम और दान से हो जायेगा ,
(अनग्निग्रहणमुपवासविषयम्)
इसलिये ब्राह्मण को कम से कम व्रत , उपवास , दानादि तो खूब दत्तचित्तता से करने ही हैं, तभी कल्याण है ।
।। जय श्री राम ।।
No comments:
Post a Comment