सायं सन्ध्योपासना का अंत याज्ञवल्क्यजी ने तारकोदय तक जप करने का कहा अतः तारे निकलने से पहले भोजन संभव नहीं, -- *जपन्नासीत सावित्रीं प्रत्यगातारकोदयात्।।*
तत्र - मत्स्य पुराणने सूर्यास्त के बाद के तीन मुर्हूत = २/२४ घं-मिनट को -- राक्षसीवेला सर्वकर्म में वर्ज कही हैं अतः सूर्यास्त के २/३० घंटे के बाद या तारे उदित होने पर कर सकतें हो -- "(सायाह्नस्त्रि मुर्हूतः स्याच्छ्राद्धं तत्र न कारयेत्। राक्षसीनामवेला गर्हिता सर्वकर्मसु।। मत्स्य पु०।।)"
तथापि - रात्रि के मध्य दो प्रहर की संधी की दो घडी ४८ मिनट से पहिले भोजन कर सकतें हैं -- *महानिशा द्वे घटिके रात्रौ मध्यमयामयोः। नैमित्तिकं तदा कुर्यात्काम्यं नैव कदाचन।। मार्कंडेय।।
उदाहरण - सूर्योस्त सामान्य ७ बजे हो तो ७+३+३-००/४८= २४/१२ तक भोजन कर सकतें हैं ।
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