Monday, 26 March 2018

मायावी लोग सिद्धान्ति को भी मायावादी कहने से नहीं चूकते

जब मनुष्य को भ्रम तथा मोह घेर लेता है तो वो अपना मत उलटे प्रकार से रखने लगता है , जो सत्य है उसको असत्य रूप से ग्रहण करता है l जो विषय श्रेय के कारण हैं उसको वो असाध्य सिद्ध करता है l
ऐसे अनेक उदाहरण आपको देखने को मिलते रहे होंगे l
उदाहरण के लिये जो वेदवेद्य तत्व का प्रतिपादन सर्वत्र हुआ है , उसको ग्रहण ना करके कुछ और प्रकार के अर्थ भी हो सकते हैं इस भ्रम में भ्रान्तमति  अवैदिक सिद्धान्त को प्रसारित करते हैं l
उससे भी नहीं होता है तृप्ति , तो संपूर्ण वेद के उद्धार करने वाले साक्षात् वेदस्वरूप भगवान् को भी ये मायावी कह देने से नहीं चुकते l
और ये भ्रान्ति जब पूर्ण रूप से बुद्धि में स्थिरता को प्राप्त हो जाती है तो इन भ्रान्त पशुओं को हम धूर्त कहते हैं , क्योंकि वे फिर वेदों पर भी तर्क करते हैं , इसलिये तार्किकों को हम धूर्त ही कहते हैं l ये मायाजाल भी प्रसारित करते हैं l
मायावी जो मायाजाल फैलाते हैं उनमें उनकी भावना यहीं होती है कि हमारे माया में आने वाले लोग सिद्धान्त ना रख दें l अन्यथा फिर उनकी माया का तिरोभाव हो जायेगा l
इसलिये ऐसे मायाजाल के कर्ता जो वेदों में प्रतिपादित अनन्त श्रुति को मिथ्या कह कर भ्रम में डाल कर माया का प्रसार करे उस धूर्त द्वारा प्रवर्तित मत ही मोह में डालने वाला है l

-------सनातन वैदिक धर्म में प्रतिपादित अद्वैत मत ही सकल वेदादि शास्त्रों द्वारा स्वीकृत है l
इस मत के खण्डन में जो वेद विरुद्ध मत रखा जाये , वो मायाजाल है l
और मायावी तो सिद्धान्त रखने वाले को भी मायावादी कहने से नहीं चुकते l

सावधान ---------

साभार रत्नेश तिवारी
ll जय श्री मन्नारायण ll

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