#वेदानुरागी -
काली को नाग यज्ञोपवीताङ्गी कहा है इसलिये स्त्रियॉ जनेउ पहनती है । पण्डिता कहा , इसलिये स्त्रियॉ वेदाध्ययन करतीं हैं ।
#उत्तर - नाम वेदानुरागी है, काम है पाखण्डानुराग करना । नागों को यज्ञोपवीत के रूप में धारण करना किस वेद मन्त्र में कहा गया है ? ये वेदानुरागी को बताना चाहिये । स्वामी दयानन्द ने संस्कार विधि या सत्यार्थ प्रकाश आदि में कहीं पर ऐसा उल्लेख किया हो तो वही बता दो !
जब यज्ञोपवीत के रूप में नाग धारण करने का कोई विधि वाक्य है ही नहीं , ना ही तुम सामाजिकों के मत में ऐसा कोई विधान है तो एक नाग यज्ञोपवीताङ्गी सम्बोधन वाली कोई स्त्री , स्त्रियों के यज्ञोपवीत की प्रमाण कैसे हुई ? नाग के यज्ञोपवीत रूप में धारित न होने से तो यहॉ मुख्यार्थ बाध हुआ है और शास्त्र का नियम है कि मुख्यार्थ बाध होने पर लक्षणा प्रवृत्त होती है ।
नाग और यज्ञोपवीत दोनों विषय और विषयी में मृदुता अर्थात् लचीलेपन रूपी गुण की साम्यता है । इसलिये सादृश्य सम्बन्ध से गौणी तथा यज्ञोपवीत का आरोप होने से सारोपा लक्षणा हुई ।
अब क्योंकि उन नाग यज्ञोपवीताङ्गी की उक्त सादृश्यता का प्रयोजन भगवती कालिका में स्कन्ध से कटिप्रदेश की ओर अथवा कण्ठ में माला सदृश् एक यज्ञोपवीत की भॉति सव्य /अपसव्यादि रूप में अवस्थित नागों से देह में भयानकरसोपेत गात्रशोभा द्वारा भगवती कालिका की उग्रता का सूचन करना है, फलतः गौणी सारोपा नामक प्रयोजनवती लक्षणा यहॉ विहित होगी ।
अरे वेदानुरागी!
मोटी बुद्धि से ही समझो कि सिंहो माणवकः ( यह बालक शेर है ) इत्यादि स्थलों पर उपमान के शौर्यादि गुणों का आरोप उपमेय में किया जाता है कि नहीं ! तो क्या इस आरोप से उपमेय उपमान हो जाता है क्या ? एक बालक सिंह सदृश् शूरता और क्रूरता के गुणों वाला है तो क्या हरेक बालक को , उसी बालक या सिंह जैसा ही मानेगे क्या ?
पण्डिता कहलाने के लिये वेदाध्ययन ही करना कोई अनिवार्यता नहीं । धर्मं चरति पण्डितः - इस स्मृति से अपने वर्णाश्रमाद्यनुरूप स्वधर्माचरण का पालन करने वाले को पण्डित कहा गया है । इसी रीति से जो स्त्री अपने नारी धर्म की मर्यादा का पालन करे वो पण्डिता कहलायेगी ।
वहीं काली सहस्रनाम में नृमुण्डहस्ता ( हाथ में मानव का सिर लिये हुए) कहा गया है काली को , तो वेदानुरागी बतायें कि क्या आर्य कन्याऐं हाथ में खोपडी भी रखती थीं ? यदि यही बात है तो दिगम्बरा (नग्न ), श्मशानवासिनी - मरघट में रहने वाली आदि शब्दों पर क्या करेंगे न जाने !
सकल - विरुद्ध- धर्माश्रयता - ये भगवती कालिका का स्वरूप है । नृमुण्डहस्ता, मदिरोन्मादा , रक्तप्रिया , शवासना आदि अशुद्ध , अपवित्र , अमंगल वेष धारण करके भी स्वदर्शन , स्मरणादि से प्राणिमात्र का मंगल करने के स्वरूप वाली भगवती कालिका अज्ञानी समाजियों के समझ नहीं आयेंगी ।
।। जय श्री राम ।।
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