Tuesday, 20 March 2018

स्त्रीयों के यज्ञोपवीत का खण्डन

#वेदानुरागी -
काली को नाग  यज्ञोपवीताङ्गी कहा है इसलिये स्त्रियॉ जनेउ पहनती है । पण्डिता कहा , इसलिये स्त्रियॉ  वेदाध्ययन  करतीं हैं ।

#उत्तर -    नाम वेदानुरागी है, काम है  पाखण्डानुराग करना ।  नागों  को यज्ञोपवीत  के रूप में धारण करना  किस वेद मन्त्र  में कहा गया है  ? ये वेदानुरागी को बताना चाहिये । स्वामी दयानन्द ने संस्कार विधि या सत्यार्थ प्रकाश आदि में कहीं पर ऐसा उल्लेख किया हो तो वही बता दो !

जब यज्ञोपवीत के रूप में नाग धारण करने का कोई विधि वाक्य है ही नहीं , ना ही तुम सामाजिकों के मत में ऐसा कोई विधान है तो  एक  नाग यज्ञोपवीताङ्गी  सम्बोधन वाली कोई स्त्री  , स्त्रियों के यज्ञोपवीत की प्रमाण कैसे हुई ?   नाग के यज्ञोपवीत  रूप में धारित न होने से तो यहॉ     मुख्यार्थ बाध हुआ है और शास्त्र का नियम है कि मुख्यार्थ बाध होने पर  लक्षणा प्रवृत्त होती है । 

नाग और यज्ञोपवीत दोनों विषय और विषयी में मृदुता अर्थात्  लचीलेपन  रूपी गुण की  साम्यता है । इसलिये सादृश्य सम्बन्ध से गौणी तथा यज्ञोपवीत का आरोप होने से सारोपा लक्षणा हुई ।

अब क्योंकि   उन  नाग यज्ञोपवीताङ्गी की उक्त  सादृश्यता का प्रयोजन  भगवती कालिका में  स्कन्ध से कटिप्रदेश की ओर  अथवा कण्ठ में माला सदृश्  एक  यज्ञोपवीत की भॉति  सव्य /अपसव्यादि रूप में  अवस्थित  नागों से  देह  में भयानकरसोपेत गात्रशोभा  द्वारा  भगवती कालिका की उग्रता का  सूचन करना  है, फलतः  गौणी सारोपा नामक  प्रयोजनवती लक्षणा यहॉ विहित होगी ।

अरे वेदानुरागी!
मोटी बुद्धि से ही  समझो कि सिंहो माणवकः ( यह बालक शेर है )  इत्यादि स्थलों पर  उपमान के शौर्यादि  गुणों का आरोप उपमेय में किया जाता है कि नहीं !  तो क्या इस आरोप से उपमेय उपमान हो जाता है क्या  ? एक बालक  सिंह सदृश्  शूरता और क्रूरता  के गुणों वाला  है तो क्या  हरेक बालक  को , उसी बालक या  सिंह  जैसा ही मानेगे क्या ?

पण्डिता कहलाने के लिये वेदाध्ययन  ही करना कोई अनिवार्यता नहीं ।  धर्मं चरति पण्डितः - इस स्मृति से  अपने  वर्णाश्रमाद्यनुरूप  स्वधर्माचरण का पालन करने वाले को पण्डित  कहा गया है । इसी रीति से जो स्त्री अपने  नारी धर्म की मर्यादा का पालन करे वो पण्डिता कहलायेगी ।

वहीं काली सहस्रनाम में नृमुण्डहस्ता ( हाथ में मानव का सिर लिये हुए) कहा गया है काली को , तो वेदानुरागी बतायें कि क्या आर्य कन्याऐं हाथ में खोपडी भी  रखती थीं ?  यदि यही बात है तो    दिगम्बरा   (नग्न ), श्मशानवासिनी -  मरघट में रहने वाली  आदि शब्दों पर क्या करेंगे न जाने  !  

  सकल - विरुद्ध- धर्माश्रयता - ये भगवती कालिका का स्वरूप है ।   नृमुण्डहस्ता, मदिरोन्मादा , रक्तप्रिया  ,    शवासना  आदि अशुद्ध , अपवित्र ,  अमंगल वेष धारण करके भी  स्वदर्शन , स्मरणादि से प्राणिमात्र  का मंगल करने के     स्वरूप वाली भगवती कालिका  अज्ञानी समाजियों के समझ नहीं आयेंगी ।

।। जय श्री राम  ।।

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