#दास शब्द की मौलिकता -
वैदिक शास्त्रों में शर्मा , वर्मा , गुप्ता और दास , ये चार उपनाम क्रमशः ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य व शूद्र से सम्बद्ध माने गये हैं !
शास्त्र कहते हैं -
ब्राह्मण का शर्मा शब्द से युक्त , क्षत्रिय का रक्षा शब्द से युक्त , वैश्य का पुष्टि शब्द से युक्त और शूद्र का 'दास' शब्द से युक्त उपनाम रखना चाहिए -
शर्मवद् ब्राह्मणस्य स्याद्राज्ञो रक्षासमन्वितम्।
वैश्यस्य पुष्टिसंयुक्तं शूद्रस्य प्रेष्यसंयुतम् ।। (मनुस्मृतिः २/३२ )
इस श्लोक की टीका में मन्वर्थमुक्तावलीकार आचार्य श्री कुल्लूक भट्ट स्पष्ट उदाहरण देते हुए कहते हैं -
//////////उदाहरणानि तु - शुभशर्मा , बलवर्मा , वसुभूतिः दीनदास इति । तथा च -
शर्म देवश्च विप्रस्य वर्म त्राता च भूभुजः ।
भूतिदत्तश्च वैश्यस्य #दासः_शूद्रस्य_कारयेत् ।। /////////////
और फ़िर् विष्णुपुराण का प्रमाण अवतरित करते हुए आचार्य श्री कुल्लूक भट्ट कहते हैं -
////////विष्णुपुराणेsप्युक्तम् -
शर्मवद् ब्राह्मणस्योक्तं वर्मेति क्षत्रसंयुतम् ।
#गुप्तदासात्मकं_नाम_प्रशस्तं_वैश्यशूद्रयोः ।। (विष्णुपुराणम् ३।१०।०९ ) //////
ये तो हुई #दास# शब्द पर पारम्परिक सनातनी वैदिक दृष्टि !
..........................इसी के साथ भारत के सनातन हिन्दू धर्म की #दास_प्रथा पर आधुनिक कथित सामाजिक विचारकों व इतिहासकारों की दृष्टि इस वक्तव्य (पोस्ट ) में अवतरित किये गए कुछ पृष्ठों के माध्यम से अवलोकन करें ! पुस्तक : प्राचीन भारत का सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास ।। लेखक - डॉ० शिवस्वरूप सहाय ।।
।। जय श्री राम ।।
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