क्या कर्तव्य है क्या अकर्तव्य , इसमें शास्त्र ही प्रमाण है ,
मानव स्वयं धर्माधर्म का निर्णय करने में सर्वथा समर्थ नहीं होता है क्योंकि उसमें भ्रम , प्रमाद, विप्रलिप्सा और करणापाटव - ये स्वाभाविक दोष सम्भव होते हैं ।
प्रज्ञान शर्मा
।। जय श्री राम ।।
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