दयानन्द ने ज्योति:शास्त्र का उचित ज्ञान न होने से 'सत्यार्थप्रकाश' (पृष्ठ ३५-३६) में ज्योति: शास्त्र के फलभाग का पर्याप्त दूषण किया है।
......उसके द्वारा दिये गए तर्कों से इस बात की पुष्टी हो जाती है कि उसे ज्योति:शास्त्र का ज्ञान नहीं था। अत: इसे #बालहठ अथवा #बालचेष्टितचपलता कहना उचित है।
शास्त्र को यथाविधि जाने विना उसका #दूषण करने वाले तथा अपने को #तच्छात्रवित् कहने वाले ये दोनों ही दोषी होतें हैं।
#ध्यातव्य है कि ज्योति:शास्त्र में :--
१. जो ज्योति:शास्त्र जाने विना अथवा मात्र फलभाग पढकर अपने को दैवज्ञ अथवा ज्योतिषिक कहता है उसे #नक्षत्रसूची ऐसा कहकर निन्दनीय माना है।
२. जो ज्योति:शास्त्र जाने विना शास्त्र की निन्दा करता है उसे भी निन्दनीय माना है।
_______ उपरोक्त दोनों शास्त्र निर्णय में प्रमाण नहीं होते।
#सिद्धान्तज्ञ_अनेकहोरावित्_उहापोहपटु_सिद्धमन्त्र_कुलीनविप्र ही दैवज्ञ अथवा फलप्रवक्ता होता है। नान्य:।
अत: शास्त्रज्ञों विप्रों को चाहिए कि कुप्रचारकों भ्रान्तों का भ्रमभञ्जन तथा शास्त्रतत्वों का यथाशास्त्र समाज में प्रचार करें!
तथा स्वकल्याण चाहने वाले को चाहिए कि विशुद्धविप्र से ही फलादेश श्रवण करें!
जय श्री राम।।
No comments:
Post a Comment