गृहस्थाश्रम परिचय :-
गृहस्थ चार प्रकारका होता हैं -
१. #वार्ताक - कृषि एवं गौरक्षा आदि वैश्यवृत्तिसे निर्वाह करनेवाला और नित्यनैमित्तिकादि कर्मोंका अनुष्ठान करनेवाला गृहस्थ को वार्ताक कहा जाता हैं । (रत्नप्रभा)
२. #यायावर - उस गृहस्थ को कहते हैं जो सदा अयाचित वृत्ति होकर याजन, अध्यापनशील और प्रतिगृहसे विमुख हो । (रत्नप्रभा)
अथवा, उस गृहस्थ को कहते हैं जो यजन, याजन, दान, अध्यापन एवं प्रतिग्रह करते हैं । (प्रकटार्थ)
३. #शालीन - षट्कर्मोंमें (याग, अध्ययन, दान, अध्यापन, याजन, प्रतिग्रह ; अथवा, स्नान, दान, तपस्या, होम, सन्ध्यादि, पितृतर्पण ) रत होकर याजन आदि वृत्तिकरके सञ्चय करनेवाला गृहस्थ शालीन कहलाता हैं । (रत्नप्रभा)
अथवा, यजनशील परन्तु याजनविमुख, स्वयं अध्ययनरत परन्तु अध्यापन नहीं करते, दानशील और प्रतिग्रहविमुख गृहस्थको शालीन कहते हैं । (प्रकटार्थ)
४. #घोरसंन्यासिक - उद्धृत (स्वयं संगृहीत) शुद्ध जलसे कार्य करता हुआ प्रतिदिन भैक्ष्यादि उञ्छवृत्ति करनेवाला ग्रामवासी घोरसंन्यासिक कहा जाता हैं, क्योंकि वह हिंसा आदिसे रहित हैं । (रत्नप्रभा)
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