#श्री_आद्य_शंकराचार्य के अनुसार #कर्मकाण्ड का महत्त्व -
श्री आद्य शंकराचार्य के सिद्धान्त में कर्मकाण्ड का अत्यन्त महत्त्व है ।
आचार्य के मत में कर्मकाण्ड से ज्ञानकाण्ड की एकवाक्यता है । इस सम्बन्ध में यजुर्वेदीय की काण्वी शाखा के वाजसनेयब्राह्मण की श्रुतियों के भाष्यामृत सिन्धु में श्रीभगवान् आद्य शंकराचार्य का कथनरस इस प्रकार उद्भावित है कि -
वेदानुवचन , यज्ञ , दान और तप - इन शब्दों से सारा ही नित्यकर्म उपलक्षित होता है , इस प्रकार काम्यकर्मरहित सम्पूर्ण नित्यकर्म आत्मज्ञान की उत्पत्ति के द्वारा मोक्ष के साधन होते हैं ।
इस प्रकार कर्मकाण्ड से ज्ञानकाण्ड की एकवाक्यता ज्ञात होती है ।
श्रीमद्भगवत्पादाचार्य शंकर का कथन है कि कर्म चित्तशुद्धि के कारण हैं । कर्मों से संस्कारयुक्त हुए विशुद्धचित्त पुरुष ही उपनिषत्प्रकाशित आत्मा को बिना किसी रुकावट के जान सकते हैं ।
ऐसा ही #विशुद्धसत्त्वस्ततस्तु ० इस आथर्वण श्रुति से भी सिद्ध होता है तथा #ज्ञानमुत्पद्यते_पुंसां० ऐसी स्मृति भी है ।
फलतः आत्मकल्याण के इच्छुक प्रत्येक ब्राह्मण को काम्य तथा निषिद्ध कर्मों से दूर रहकर नित्य , नैमित्तिक, प्रायश्चित्त तथा उपासनाप्रधान कर्मों का पूर्ण मनोयोग से अनुपालन करना चाहिये ।
।। जय श्री राम ।।
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