Saturday, 18 November 2017

वेद क्या है ?

अपने वेदों के सन्दर्भ  में यह  सत्य हरेक हिन्दू को अवश्य जानना  चाहिये -
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वेद भगवान् अधिकारानुसार प्राणीमात्र के लिए कल्याणकारक हैं । वह अनादि , अनन्त और अपौरुषेय हैं । अतः पुरुषाश्रित (पुरुष में रहने वाले ) भ्रम ,  प्रमाद,  करणापाटव , विप्रलिप्सा आदि पुरुषसाधारण दोषों से रहित हैं । कोई भी व्यक्ति यदि कोई ग्रन्थ लिखता है तो वह उसमें निहित सामग्री का ज्ञान प्रमाणान्तरों ( दूसरे प्रमाणों ) से करता है किन्तु वैदिक सामग्री का ज्ञान किसी भी प्रमाणातर से हो सकता नहीं ।

सन्ध्या,  वन्दन , याग,  होम आदि उपात्तदुरितक्षय ( अनायास होने वाले पापों के विनाश )  तथा स्वर्गादि के साधन है - इत्यादि बातें किसी भी पुरुष को किसी भी प्रकार से ज्ञान तक नहीं हो सकती । 

जब ज्ञात नहीं हो सकती तो कोई पुरुष इन बातों को लिख कैसे सकता है ? (अर्थात्  वेदों की रचना  किसी  भी प्राणी  ने नहीं की हैं )   अतः वेदों में पुरुषसम्बन्ध के गन्ध  की भी आशंका की सम्भावना ही नहीं है ।

- श्री स्वामी निरञ्जनदेव तीर्थ जी महाराज  ।
जगद्गुरु शंकराचार्य, पुरीपीठाधीश्वर
[ वेदार्थपारिजात , भाग -०१  उपोद्घात ]

।। जय श्री राम ।।

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