१.आपकी सोच मनुस्मृति आधारित है, ये २१ वीं सदी चल रही है ।
उत्तर - मनुस्मृति किसी व्यक्ति के किसी कालखण्ड की मानसिक कल्पना नहीं वरन् सनातन ईश्वरीय संविधान है , मनुस्मृति के नियम मनु की भी रचना नहीं है , आप मनुस्मृति की जानकारी लीजिये पहले । यह मनुस्मृति तब तक प्रासंगिक है , जब तक ईश्वर और मनुष्य हैं । जब तक ये जगत् है , तब तक मनुस्मृति के संविधान लागू हैं । ईश्वर की ये प्रकृति मनुस्मृति के संविधान से ही चल रही है ।
२. अपने से बड़ों का सम्मान करना चाहिये , आपने स्वामी रामदेव को आशीर्वाद कैसे दिया ?
उत्तर- आयु, जाति एवं ज्ञान - ये तीन वृद्धता (बड़े होने) के वैदिक मानक होते हैं ।
रामदेव आयु में, धन में, जन में, प्रसिद्धि में , देह के आरोग्यदायक ज्ञान में भले ही हमसे वृद्ध है किन्तु वर्ण में , आचार में, धर्म में , शास्त्रावबोध में , आत्मा के मोक्षदायक ज्ञान में हम उससे वृद्ध हैं । जहॉ तक बात है हमारी प्रसिद्धि की , तो हमें जानने वाला ईश्वर है, अतः जिसको जानना चाहिये हमें , वो हमें जानता है , इतना पर्याप्त है हमारे लिये ।
वैदिक नियमों के आधार पर हम उसके गुरुदेव हैं, वो हमें नहीं जानता या नहीं मानता तो इससे शाश्वत वैदिक नियम समाप्त नहीं हो जाते । यह अखिल ब्रह्माण्ड वैदिक नियमों से ही चल रहा है ।
३. ईश्वर तो सब जीवों के लिये समान है , क्या ईश्वर भी भेदभाव करता है ?
उत्तर - अब सुनु परम बिमल मम बानी। सत्य सुगम निगमादि बखानी।।
निज सिद्धांत सुनावउँ तोही। सुनु मन धरु सब तजि भजु मोही।।
मम माया संभव संसारा। जीव चराचर बिबिधि प्रकारा।।
सब मम प्रिय सब मम उपजाए। सब ते अधिक मनुज मोहि भाए।।
तिन्ह महँ द्विज द्विज महँ श्रुतिधारी। तिन्ह महुँ निगम धरम अनुसारी।।
तिन्ह महँ प्रिय बिरक्त पुनि ग्यानी। ग्यानिहु ते अति प्रिय बिग्यानी।।
तिन्ह ते पुनि मोहि प्रिय निज दासा। जेहि गति मोरि न दूसरि आसा।।
पुनि पुनि सत्य कहउँ तोहि पाहीं। मोहि सेवक सम प्रिय कोउ नाहीं।।
भगति हीन बिरंचि किन होई। सब जीवहु सम प्रिय मोहि सोई।।
भगतिवंत अति नीचउ प्रानी। मोहि प्रानप्रिय असि मम बानी।।
।। जय श्री राम ।।
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